Thursday, December 17, 2009

यात्रा पर जाने से पहले क्या क्या बातें ध्यान में रखें

यात्रा पर जाने से पहले क्या क्या बातें ध्यान में रखें

रोजमर्रा की भाग दौड़,तनाव भरी शहरी जिन्दगी,घिसेपिटे ठर्रे पर जिन्दगी बिताते हुए  कई बार हमारा  मन  करता है की हम किसी ऐसी जगह पर जाये जहाँ पर कुछ सकुन मिल सके पर पर्यटन
पर जाने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखें
१.यात्रा की योजना अचानक नही बनाये वर्ना तैयारी पूरी नहीं हो पायेगी|
२.अगर रेल मार्ग से जा रहे है तो रीजर्वेसन जरूर कराएँ
३.यात्रा पर ले जाने वाली चीजों की एक सूची बनायें
४.अगर कोई बीमारी है तो उसकी दवाई जरूर साथ ले जाये क्योकि जरूरत  पड़ने पर हर दवाई हर जगह उपलब्ध हो ये जरूरी नहीं है| अगर गर्मियों में गर्म जगहों पर जाना आवश्यक हो तो ग्लूकोन-डी अवश्य साथ ले और खूब पानी तथा निम्बू सरबत पीयें| 
५.सामान कम से कम रखे ताकी ले जाने में कोई दिक्कत न हो
६.होटल का आरक्षण जरूर कराएँ|किसी दलाल के जरिये होटल या टेक्सी  बुक न करवाएं क्योकि ये दलाल कमीशन  के लालच में महंगा और निम्न स्तर का कमरा दिला देते है|  
७.यात्रा के स्थान की जरूरी जानकारी अवश्य इक्कठा कर ले
८.ऐसे  स्थान का प्लान ना बनाये जहाँ का वातावरण उस समय आपके अनुकूल न हो
८.एक साथ बहूत सारे स्थान न चूने यात्रा का मकशद शुकून होना चाहिए ना की  भाग दौड़
९.व्यर्थ की शौपिंग ना करे|सिनेमा देखने,क्लब,जिम आदि में समय बर्बाद न करे|ये काम आप घर पर भी कर सकते है| 
१०.यात्रा के लिए भरपूर धन साथ रखे,क्रेडिट कार्ड साथ रखे तथा ज्वेलरी कम से कम ले जाये क्योकि अधिक गहने ले जाने पर लूटपाट चोरी आदि का खतरा रहता है| 
११. डिजिटल केमरा,अगर हेंडीकेम, साथ ले ले
शेष शीघ्र                                                                                  

                                                                                                                         मंजूषा

Wednesday, December 16, 2009

पाँच देवी दर्शन:वज्रेश्वरी देवी,ज्वालामुखी देवी,चिंतपूर्णी माता

वज्रेश्वरी देवी




वज्रेश्वरी देवी का यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के मुख्य नगर काँगड़ा में स्थित है जन साधारण में यह देवी नगकोट या काँगड़ावाली देवी के नाम से विख्यात है यवनों के इतने आक्रमणों के पश्चात यह मंदिर माता वज्रेश्वरी देवी के प्रताप से अक्षत रहा यहाँ पर माता के वक्ष स्थल गिरे है माता की यहाँ पिंडी रूप में पूजा होती है पठानकोट से आनेवाले यात्री लगभग ३ घंटे की यात्रा करके काँगड़ा पहुच सकते है काँगड़ा नगर हिमाचल प्रदेश के सभी नगरो से बस मार्ग द्वारा जुड़ाहै रेल मार्ग से आनेवाले यात्री पठानकोट से छोटी गाड़ी द्वारा पठानकोट-जोगिन्दर रूट पर काँगड़ा मंदिर स्टेशन पर उतरते है मंदिर यहाँ से नजदीक है काँगड़ा नगर ज्वालामुखी से लगभग ३० किलोमीटर दुरी पर पड़ता है.मंदिर के द्वार तक पहुँचने के लिए सीढियाँ चढ़ कर जाना पड़ता है मंदिर के दोनों और प्रसाद और पूजा सामग्री की कई दुकाने है

ज्वालामुखी देवी



ज्वालामुखी देवी का यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला काँगड़ा में स्थित है
पंजाब राज्य के जिला होशियार पुर से गोपीपुरा डेरा होते हुए डेरा से लगभग २० किमी दुरी पर ज्वाला देवी का मंदिर हैकाँगड़ा से यात्री बस द्वारा २ घंटे में ज्वालाजी पहुँच सकते है दुर्गा सप्तसती के अनुसार यहाँ माता की महा जिव्हां गिरी थी इसे ५१ शक्तिपीठों में सर्वोपरि माना गया है यहाँ माता के दर्शन ज्योति के रूप में होते है यहाँ पर ६ स्थानों पर पर्वत की चट्टानों से निरंतर ज्योति बिना किसी ईधन के प्रज्वल्लित होत्ती रहती है



चिंतपूर्णी माता




चिंतपूर्णी माता अर्थात चिंता को पूर्ण करनेवाली देवी चिंतपूर्णी देवी का यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला ऊनामें स्थित है पंजाब के होशियारपुर से कुछ दुरी पर भरवाई बस अड्डे से लगभग ३ किमी की दूरी पर चिंतपूर्णी देवी का मंदिर है माता के यहाँ पिंडी रूप में पूजा होती है यहाँ पर सती के चरण गिरे थे कहते है की चिंतपूर्णी देवी का एक बार दर्शन मात्र करने से समस्त चिन्ताओ से मुक्ति मिलती है इसे छिन्नमस्तिका देवी भी कहते है श्री मार्कंडेय पुराण के अनुसार जब माँ चंडी ने राक्षसों का संहार करके विजय प्राप्त की तो माता की सहायक योगिनियाँ अजया और विजया की रुधिर पिपासा को शांत करने के लिए अपना मस्तक काटकर, अपने रक्त से उनकी प्यास बुझाई इसलिए माता का नाम छिन्नमस्तिका देवी पड़ गया प्राचीन ग्रंथो के अनुसार छिन्नमस्तिका देवी के निवास के लिए मुख्य लक्षण यह माना गया है की वह स्थान चारों और से शिव मंदिरों
से घिरा रहेगा और यह लक्षण चिंतपूर्णी में शत प्रतिशत सत्य प्रतीत होता है क्योकि चिंतपूर्णी मंदिर के पूर्व में कालेश्वर महादेव,पश्चिम में नर्हारा महादेव,उत्तर में मुच्कुंड महादेव और दक्षिण में शिववाड़ी है मंदिर के प्रांगन में पेड़ के तने पर नाल बाँधकर अपनी मनोकामना देवी से मांगते है















Saturday, December 12, 2009

अल्मोड़ा

अल्मोड़ा

अल्मोड़ा पहाड़ों की गोद में बसा एक खुबसूरत पर्यटन स्थल है|इसे बसाने का श्रेय अंग्रेजों को जाता है दूर दूर तक फैले बर्फ के पहाड़,घास के मैदान,झरने,फल,फूलों से लदे पेड़ आदि एक मनोहारी द्रश्य प्रस्तुत करते है|चीड,देवदार के घने जंगलों से आती ठंडी ठंडी हवा पर्यटकों के तन और मन दोनों में ताजगी भर देती है|यहाँ पर सेव,स्ट्राबेरी,आड़ू तथा अन्य जंगली फल,फूल पाए जातें है| यहाँ पर मकान पर्वतों की ढलानों पर बनाये जाते है जीसमे चीड़,देवदार की लकड़ियों का उपयोग किया जाता है|यहाँ पर कुमाऊनी   और गढ़वाली भाषाएँ बोली जाती है तथा यहाँ के लोग अत्यंत सीधे और मिलनसार होतें  है| ग्रीष्मकाल में यहाँ पर बुरांश  के फूल खिलते है जिस से यहाँ की खूबसूरती  और भी बढ़ जाती है| पर्यटक यहाँ की स्थानीय मिठाई सिंगोडी और बालमिठाई जरूर खरीदें |यहाँ पर पैदल घुमतें हुए  यहाँ की संस्कृति यहाँ के लोग,उनके आवास आदि का नजारा  देखा जा सकता है|
 नन्दा देवी मन्दिर :
गढ़वाल कुमाऊँ की एक मात्र ईष्ट देवी भगवती नन्दा पार्वती है। नन्दा अष्टमी के दिन सम्पूर्मम पर्वतीय अंचल में नन्दा की विशेष पूजा होती है। नन्दा देवी की मूर्ती केले के पत्तों और केले के तनों से बनाई जाती है। नन्दा की सवारी भी निकाली जाती है। नन्दा अष्टमी भाद्रपद अर्थात् सितम्बर के महीने में आती है। यहाँ पर इस दिन बहुत बड़ा मेला लगता है। इस दिन दर्शनार्थी आकर पूजा करते हैं। मेले में झोड़ा, चाँचरी और छपेली आदि नृत्यों का भी सुन्दर आयोजन होता है। कुमाऊँ के कई अंचलों की लोकनृत्य की पार्टियाँ यहाँ आकर अपना-अपना कौशल दिखाती हैं, पर्यटक, पदारोही, सैलानी और साहित्य एवं कला प्रेमी इन्ही दिनों अधिकतर कुमाऊँ की संस्कृति तता वहाँ के जन-जीवन की वास्तविक जानकारी करने हेतु अल्मोड़ा पहुँचते हैं। अल्मोड़ा की नन्दा देवी के दर्शन करना अत्यन्त लाभकारी माना जाता है। अल्मोड़ा में नन्दा देवी के अलावा त्रिपुर सुन्दरी मन्दिर, रघुनाथ मन्दिर, महावीर मन्दिर, मुरली मनोहर मन्दिर, भैरवनाथ मन्दिर, बद्रीनाथ मन्दिर, रत्नेश्वर मन्दिर और उलका देवी मन्दिर प्रसिद्ध हैं। जामा मस्जिद, मैथोडिस्ट चर्च और अंगलीकन चचें प्रसिद्ध है।


 कसार देवीमंदिर :
यह मुख्य नगर से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर से हिमालय की ऊँची-ऊँची पर्वत श्रेणियों के दर्शन होते हैं। कसार देवी का मंदिर भी दुर्गा का ही मंदिर है। कहते हैं कि इस मंदिर की स्थापना ईसा के दो वर्ष पहले हो चुकी थी। इस मंदिर का धार्मिक महत्व बहुत अधिक आंका जाता है।

चित्तई मंदिर :
कुमाऊँ के प्रसिद्ध लोक - देवता 'गोल्ल' का यह मंदिर नन्दा देवी की तरह प्रसिद्ध है। इस मंदिर का महत्व सबसे अधिक बताया जाता है। अल्मोड़ा से यह मंदिर ६ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हिमालय की कई दर्शनीय चोटियों के दर्शन यहाँ से होते हैं।


कालीमठ :
यह अल्मोड़ा से ५ कि.मी. की दूरी पर स्थित है। एक ओर हिमालय का रमणीय दृश्य दिखाई देता है और दूसरी ओर से अल्मोड़ा शहर की आकर्षक छवि मन को मोह लेती है। प्रकृतिप्रेमी, कला प्रेमी और पर्यटक इस स्थल पर घण्टों बैठकर प्रकृति का आनन्द लेते रहते हैं। गोरखों के समय राजपंडित ने मंत्र बल से लोहे की शलाकाओं को भ कर दिया था। लोहभ के पहाड़ी के रुप में इसे देखा जा सकता है।


 सिमतोला :
यह अल्मोड़ा नगर से ३ कि.मी. की दूरी पर 'सिमतोला' का 'पिकनिक स्थल' सैलानियों का स्वर्ग है। प्रकृति के अनोखे दृश्यों को देखने के लिए हजारों पर्यटक इस स्थल पर आते-जाते रहते हैं।

 मोहनजोशी पार्क :
इस जगह पर एक ताल का निर्माण किया गया है। मानव निर्मित 'v' आकार के इस ताल की सुन्दरता इतनी आकर्षक है कि सैलानी घंटों इसी के पास बैठकर प्रकृति की अद्भुत छवि का आनन्द लेते रहते हैं। यहाँ का मोहक और शान्त वातावरण पर्यटकों के लिए काफी सुखद अनुभव रहता है।

 मटेला:
मटेला का सुखद वातावरण सैलानियों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र है। यहाँ के बाग अत्यन्त सुन्दर हैं। 'पिकनिक' के लिए कई पर्यटक यहाँ अपने-अपने दलों के साथ आते हैं। नगर से १० कि.मी. की दूरी पर एक प्रयोगात्मक फार्म भी है।


राजकीय संग्रहालय :
अल्मोड़ा में राजकीय संग्रहालय और कला-भवन भी है। कला प्रेमियों तथा इतिहास एवं पुरातत्व के जिज्ञासुओं के लिए यहाँ पर्याप्त सामाग्री है।


 ब्राइट एण्ड कार्नर :
यह अल्मोड़ा के बस स्टेशन से केवल २ कि.मी. कब हूरी पर एक अद्भुत स्थल है। इस स्थान से उगते हुए और डूबते हुए सूर्य का दृश्य देखने हजारों मील से प्रकृति प्रेमी आते रहते हैं। इंगलैण्ड में 'ब्राइट बीच' है। उस 'बीच' से भी डूबते और उगते सूरज का दृश्य चमत्कारी प्रभाव डालने वाला होता है। उसी 'बीच' के नाम पर अल्मोड़ा के इस 'कोने' का नाम रखा गया है। अल्मोड़ा सुन्दर आकर्षक और अद्भुत है। इसीलिए नृत्य-सम्राट उदयशंकर को यह स्थान इतना भाया था कि उन्होंने अपनी 'नृत्यशाला' यहीं बनायी थी। उनके कई विश्वविख्यात नृत्यकार शिशुओं ने अल्मोड़ा की रमणीय धरती में ही नृत्य कला की प्रथम शिक्षा ग्रहण की थी। उदयशंकर की तरह विश्वकवि रविन्द्रनाथ टैगोर को भी अल्मोड़ा पसन्द था। वे यहाँ कई दिन तक रहे। विश्व में वेदान्त का शंखनाद करने वाले स्वामी विवेकानन्द अल्मोड़ा में आकर अत्याधिक प्रसन्न हुए थे। उन्हें इस स्थान में आत्मिक शान्ति मिली थी।
कटारमल
कटारमल का सूर्य मन्दिर अपनी बनावट के लिए विख्यात है। महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने इस मन्दिर की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उनका मानना है कि यहाँ पर समस्त हिमालय के देवतागण एकत्र होकर पूजा अर्चना करते रहै हैं। उन्होंने यहाँ की मूर्तियों की कला की प्रशंसा की है। कटारमल के मन्दिर में सूर्य पद्मासन लगाकर बैठे हुए हैं। यह मूर्ति एक मीटर से अधिक लम्बी और पौन मीटर चौड़ी भूरे रंग के पत्थर में बनाई गई है। यह मूर्ती बारहवीं शताब्दी की बतायी जाती है। कोर्णाक के सूर्य मन्दिर के बाद कटारमल का यह सूर्य मन्दिर दर्शनीय है। कोर्णाक के सूर्य मन्दिर के बाहर जो झलक है, वह कटारमल मन्दिर में आंशिक रुप में दिखाई देती है। कटारमल के सूर्य मन्दिर तक पहुँचने के लिए अल्मोड़ा से रानीखेत मोटरमार्ग के रास्ते से जाना होता है। अल्मोड़ा से १४ कि.मी. जाने के बाद ३ कि.मी. पैदल चलना पड़ता है। मन्दिर १५५४ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। अल्मोड़ा से कटारमल मंदिर १७ कि.मी. की निकलकर जाता है। रानीखेत से सीतलाखेत २६ कि.मी. दूर है। १८२९ मीटर की ऊँचाई पर बसा हुआ है। कुमाऊँ में खुले मैदान के लिए यह स्थान प्रसिद्ध है। कुमाऊँ का यह ऐसा खिला हुआ रमणीय स्थान है यहाँ देश के कोने-कोने से हजारों बालचर तथा एन.सी.सी. के कैडेट अपने-अपने शिविर लगाकर प्रशिक्षण लेते हैं। यहाँ ग्रीष्म ॠतु में रौनक रहती है। प्रशिक्षण के लिए यहाँ पर्याप्त व्यवस्था है। दूर-दूर तक कैडेट अपना कार्यक्रम करते हुए, यहाँ आन्नद मनाते हैं।
'सीतला देवी' का यहाँ प्राचीन मंदिर है। इस देवी की इस सम्पूर्ण क्षेत्र में बहुत मान्यता है। इसीलिए 'सीतलादेवी' के नाम से ही इस स्थान का नाम 'सीतलाखेत' पड़ा है। यहाँ पर्यटकों के लिए पर्याप्त व्यवस्था है। कुमाऊँ मण्डल विकास निगम ने यहाँ पर चार शैय्याओं वाला एक आवासगृह बनाया है। प्रकृति-प्रेमियो के लिए 'सीतलाखेत' का सम्पूर्ण क्षेत्र आकर्षण से बरा हुआ है। सीतलाखेत' का मुख्य आकर्षम यह है कि यहाँ से हिमालय के भव्य दर्शन होते हैं। छुट्टियों को शान्तिपूर्वक बिताने के लिए यह अत्युत्तम स्थान है।
उपत :
रानीखेत-अल्मोड़ा मोटर-मार्ग के पाँचवें किलोमीटर पर उपत नामक रमणीय स्थल है। कुमाऊँ की रमणीयता इस स्थल पर और भी आकर्षक हो जाती है। उपत में नौ कोनों वाला विशाल गोल्फ का मैदान है। गोल्फ के शौकीन यहाँ गर्मियों में डेरा डाले रहते हैं। रानीखेत समीप होने की वजह से सैकड़ों प्रकृति-प्रेमी और पर्वतारोही भी इस क्षेत्र में भ्रमणार्थ आते रहते हैं। प्रकृति का स्वच्छन्द रुप उपत में छलाक हुआ दृष्टिगोचर होता है। रानीखेत से प्रतिदिन सैलानी यहाँ आते रहते हैं।
 कालिका :
उपत में लगभग एक-डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर कालिक नामक स्थल भी अपनी प्राकृतिक छटा के लिए विख्यात है। कालिका में 'कालीदेवी' का मंदिर है। यहाँ काली के भक्त निरन्तर आते रहते हैं। 'कालिका' में वन विभाग की फूलों की एक नर्सरी है। इस नर्सरी के कारण अनेक वनस्पति शास्र के शोधार्थी और प्रकृति-प्रेमी यहाँ जमघट लगाए रहते हैं।
 मजखाली :
कालिक से केवल ७ कि.मी. दूर पर रानीखेत-अल्मोड़ा-मार्ग पर मजखाली का अत्यन्त सौन्दर्यशाली स्थल स्थित है। मजखाली की धरती रमणीय है। यहाँ से हिमालय का मनोहारी हिम दृश्य देखने सैकड़ों प्रकृति-प्रेमी आते रहते हैं। मजखाली से कौसानी का मार्ग सोमेश्वर होकर जाता है। रानीखेत से कौसानी जाने वाले पर्यटक मजखाली होकर ही जाना पसन्द करते हैं।
 सुविधाएँ
अल्मोड़ा बाज़ार, पर्यटकों, प्रकृति-प्रेमियोम, पर्वतरोहियों और पदारोहियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए अल्मोड़ा आज का सर्वोत्तम नगर है। यहाँ रहने के लिए अच्छे होटल हैं।अलका होटल, अशोक होटल, अम्बैसेडर होटल, ग्रैंड होटल, त्रिशुल होटल, रंजना होटल, मानसरोवर, न्यू हिमालय होटल, नीलकंठ होटल, टूरिस्ट कॉटेज, रैन बसेरा होटल, प्रशान्त होटल और सेवॉय होटल आदि कई ऐसे होटल हैं जहाँ रहने की सुन्दर व्यवस्था है।इसके अतिरिक्त होलीडे होम, सर्किट हाऊस, सार्वजनिक निर्माण विभाग का विश्राम-गृह, वन विभाग का विश्राम-गृह और जुला परिषद का विश्राम-गृह भी सैलानियों के लिए उपलब्ध किये जा सकते हैं। पर्यटकों के मनोरंजनार्थ यहाँ रीगल और जगन्नाथ सिनेमाघर भी हैं।यहाँ के ऊनी वस्र प्रसिद्ध है। लाला बाजार और चौक बाजार इसके केन्द्र हैं।
अल्मोड़ा जाने के लिए काठगोदाम अंतिम रेलवे स्टेसन है। काठगोदाम से अल्मोड़ा (खैरना होकर) केवल ९० कि. मी. दूर है। अल्मोड़ा से नैनीताल ६७ कि.मी., पिथौरागढ़ १०९ कि.मी. और दिल्ली ३७८ कि.मी. की दूरी पर (मोटर मार्ग से) स्थित है। इन स्थानों के लिए नियमित बस-सेवायें उपलब्ध है।

Saturday, December 5, 2009

सालासर खाटूश्यामजी यात्रा

सालासर ,खाटूश्यामजी यात्रा

सीकर सुजानगढ़ मार्ग पर एक गाँव है सालासर जो हनुमानजी का पीठ माना जाता है यहाँ पर हनुमानजी का दाढ़ी मूंछ युक्त विग्रह है जो स्वर्ण सिंहांसन पर विराजमान है मंदिर के बिच में जाल का एक पेड़ है जिस पर भक्त गन अपनी मनोकामना पूर्ण करने हेतु लाल धागे और नारियल बाँधते  है मंदिर में अखंड ज्योति जलती रहती है मंदिर के संस्थापक बाबा मोहनदास की धुनी की भभूती को लोग दुःख निवारण के लिए लेते है पास में ही अंजनी माता का मंदिर है यहाँ पर ठहरने के लिए अनेक होटल  और धर्मशालाये है चैत्र,वैसाख,भाद्रपत,अश्विन मास में यहाँ हनुमानजी का मेला लगता है यहाँ पर चूरमा या बूंदी के लड्डू की सवामनी भी कर सकते है मंदिर में ही सारा प्रबंध   हो जाता है यह राजस्थान का एक जाग्रत तीर्थ स्थान है सालासर से लगभग ५०किमी  की दूरी पर सुजानगढ़ में तिरुपति बालाजी का एक भव्य मंदिर है







खाटू श्यामजी

सीकर से ३५ मिले की दुरी पर खाटू ग्राम में श्यामजी का लोक प्रसिद मंदिर है| जनश्रुति के अनुसार महाभारत के वीर बर्बरीक के मस्तक दान देने पर श्री कृष्ण द्वारा उस शीश को कलयुग में श्याम रूप में पुजिद होने का वरदान मेला था खाटू के  किसी  व्यक्ति को श्री कृष्ण ने स्वप्न में दर्शन देकर आदेश दिया की गाँव की  बावड़ी में पड़े शीश
को निकालकर  कर प्रतिष्ठापित करो. गाँव में मंडप बनाकर इस शीश को प्रतिष्ठापित कर दिया गया. बाद में जोधपुर नरेश के  अधीन अभय  सिंह जागीरदार ने वर्त्तमान मंदिर बनाकर पुन प्रतिष्ठा
की तथा पूजा और उपासना के लिए अपनी जागीर के कई गाँव भेंट किए. शिलालेख के अनुसार फाल्गुन सुदी ७ विक्रमी १७७१ मैं मंदिर की नीव रखी गयी थी . श्याम जी की शीश पूजा की जाती है . मुखाकृति दाढ़ी मूंछ सहित है  शेष शरीर पुष्प मालाओं से बनाया गया है . आज जहाँ खाटू है तब यहाँ खट्वांग राजा की राजधानी थी जहाँ एक शिवालय तथा रूपवती  नदी  थी . बाद मैं महाभारत काल मैं बर्बरीक का मस्तक, जो एक टीले से कुरुषेत्र का  सम्पूर्ण युद्ध देख रहा था , लुप्त होगया . श्रीकृष्ण के वरदान  के कारण  उसकी श्याम रूप में पूजा  होती है खाटू के श्यामजी लोगो की श्रधा और भक्ति के केंद्र है हर वर्ष फाल्गुन एकादशी और द्वादशी को यहाँ विशाल मेला लगता है यहाँ   पर ठहरने के लिए अनेक होटल और धर्मशालाये है प्रसाद व अन्य पूजा सामग्री की कई दुकाने मंदिर के पास है यहाँ पर भी भक्त गण यहाँ पर चूरमा या बूंदी के लड्डू की सवामनी भी कर सकते है

Thursday, December 3, 2009

देहरादून शहर

देहरादून शहर

हिमालय की पहाड़ियों पर बसा देहरादून भारत के प्राचीनतम शहरों में से एक है। इसे द्रोणाचार्य के शिक्षालय के रूप में भी जाना जाता है। यह शहर गढ़वाल के शासकों का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है, जिस पर ब्रिट्शों ने कब्जा कर लिया था। यहां तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग, सर्वे ऑफ इंडिया, आई.आई.पी. आदि जैसे कई राष्ट्रीय संस्थान स्थित हैं। देहरादून में वन अनुसंधान संस्थान, भारतीय राष्ट्रीय मिलिटरी कालेज और इंडियन मिलिटरी एकेडमी जैसे कई शिक्षण संस्थान हैं। यह एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। अपनी सुंदर दृश्यवाली के कारण देहरादून पर्यटकों, तीर्थयात्रियों और विभिन्न क्षेत्र के उत्साही व्यक्तियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। स्पेशल बासमती चावल, चाय और लीची के बाग इसकी प्रसिद्धि को और बढ़ाते हैं तथा शहर को सुंदरता प्रदान करते हैं।
 दर्शनीय स्थल


तपकेश्वर मंदिर :
यह मंदिर सिटी बस स्टेंड से 5.5 कि.मी. की दूरी पर गढ़ी कैंट क्षेत्र में एक छोटी नदी के किनारे बना है। सड़क मार्ग द्वारा यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां एक गुफा में स्थित शिवलिंग पर एक चट्टान से पानी की बूंदे टपकती रहती हैं। शिवरात्रि के पर्व पर आयोजित मेले में लोग बड़ी संख्या में यहां एकत्र होते हैं और यहां स्थित शिव मूर्ति पर श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं।


मालसी डियर पार्क :
देहरादून से 10 कि.मी. की दूरी पर मसूरी के रास्ते में यह एक सुंदर पर्यटन स्थल है जो शिवालिक श्रंखला की तलहटी में स्थित है। मालसी डियर पार्क एक छोटा सा चिड़ियाघर है जहां बच्चों के लिए प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा एक पार्क भी विकसित किया गया है। सुंदर वातावरण के कारण यहां ताज़गी का अहसास होता है जिससे यह एक आदर्श दर्शनीय-स्थल और पिकनिक-स्पॉट बन चुका है। सहस्त्रधारा सल्फर मिश्रित पानी का झरना है, जिसका औषधिय महत्व भी है। बाल्डी नदी और यहां की गुफाएं एक रोमांचक दृश्य उत्पन्न करती हैं।  बस स्टेंड से 14 कि.मी. की दूर, यहां नियमित बस सेवा और टैक्सियों द्वारा पहुंचा जा सकता है। यह  पिकनिक के लिए  एक अच्छा स्थान है।

कलंगा स्मारक :
देहरादून-सहस्त्रधारा मार्ग पर स्थित यह स्मारक ब्रिटिशों और गोरखाओं के बीच 180 वर्ष पहले हुए युद्ध में बहादुरी की गाथाएं याद दिलाता है। रिसपाना नदी के किनारे पहाड़ी पर 1000 फुट की ऊंचाई पर बना यह स्मारक गढ़वाली शासकों के इतिहास को दर्शाता है।
लक्ष्मण सिद्ध :
ऋषिकेश की ओर देहरादून से 12 कि.मी. दूर यह एक प्रसिद्ध मंदिर है। किवदंती है कि एक साधु ने यहां समाधि ली थी। मंदिर तक सुलभता से पहुंच होने के कारण विशेषकर रविवार को यहां बड़ी संख्या में दर्शनार्थी आते हैं।

चन्द्रबदनी  :
देहरादून-दिल्ली मार्ग पर देहरादून से 7 कि.मी. दूर यह मंदिर चन्द्रबदनी(गौतम कुंड) के लिए प्रसिद्ध है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस स्थान पर महर्षि गौतम अपनी पत्नी और पुत्री अंजनी के साथ निवास करते थे. इस कारण मंदिर में इनकी पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि स्वर्ग-पुत्री गंगा इसी स्थान पर अवतरित हुई, जो अब गौतम कुंड के नाम से प्रसिद्ध है। प्रत्येक वर्ष श्रद्धालु इस पवित्र कुंड में डुबकी लगाते हैं। मुख्य सड़क से 2 कि.मी. दूर, चारो और से शिवालिक पहाड़ियों के मध्य में यह एक सुंदर पर्यटन स्थल है।

साई दरबार :
राजपुर रोड पर शहर से 8 कि.मी. की दूरी पर घंटाघर के समीप साई दरबार मंदिर है। इसका बहुत अधिक सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है तथा देश-विदेश से दर्शनार्थी यहं आते हैं। साई दरबार के समीप राजपुर रोड पर ही भगवान बुद्ध का बहुत विशाल और भव्य तिब्बती मंदिर है।

रॉबर्स केव (गुच्छुपानी) :

पिकनिक के लिए एक आदर्श स्थान रॉबर्स केव सिटी बस स्टेंड से केवल 8 कि.मी. दूर है। हरिद्वार-ऋषिकेश मार्ग पर लच्छीवाला-डोईवाला से 3 कि.मी. और देहरादून से 22 कि.मी. दूर है। सुंदर दृश्यावली वाला यह स्थान पिकनिक-स्पॉट है। यहां हरे-भरे स्थान पर फॉरेस्ट रेस्ट हाउस में पर्यटकों के लिए ठहरने की व्यवस्था है।

वन अनुसंधान संस्थान :
घंटा से 7 कि.मी. दूर देहरादून-चकराता मोटर-योग्य मार्ग पर स्थित यह संस्थान भारत में सबसे बड़ा फॉरेस्ट-बेस प्रशिक्षण संस्थान है। जो  तथा इसमें एक बॉटनिकल म्यूजियम भी है। एफआरआई (देहरादून) से 3 कि.मी. आगे देहरादून-तकराता मार्ग पर 8 कि.मी. की दूरी पर स्थित इंडियन मिलिटरी एकेडमी सेना अधिकारियों के प्रशिक्षण का एक प्रमुख संस्थान है।
एकेडमी में स्थित म्यूजियम, पुस्तकालय, युद्ध स्मारक, गोला-बारुद शूटिंग प्रदर्शन-कक्ष और फ्रिमा गोल्फ कोर्स (18 होल्स) दर्शनीय स्थल हैं।

तपोवन :
देहरादून-राजपुर रोड पर सिटी बस स्टेंड से लगभग 5 कि.मी. दूर स्थित यह स्थान सुंदर दृश्यों से घिरा है। कहावत है कि गुरु द्रोणाचार्य ने इस क्षेत्र में तपस्या की थी।

संतौला देवी मंदिर :
देहरादून से लगभग 15 कि.मी. दूर स्थित प्रसिद्ध संतौला देवी मंदिर पहुंचने के लिए बस द्वारा जैतांवाला तक जाकर वहां से पंजाबीवाला तक 2 कि.मी. जीप या किसी हल्के वाहन द्वारा तथा पंजाबीवाला के बाद 2 कि.मी. तक पैदल रास्ते से मंदिर पहुंचा जा सकता है। यह मंदिर लोगों के विश्वास का प्रतीक है और इसका बहुत सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है।
भागीरथ रिज़ार्ट :
सड़क मार्ग द्वारा चकराता से 18 कि.मी. दूर सेलाकी, देहरादून स्थित भागीरथी रिज़ार्ट से हिमालय की पर्वत श्रेणियों का रोमांचक दृश्य दिखाई देता है। रिजार्ट में बना शांत स्विमिंग पूल, वाटर-स्लाइडें और फव्वारा यात्रियों को आकर्षित करते हैं। पर्वत श्रेणियों की पृष्ठभूमि में बना यह रिज़ार्ट एक आदर्श पर्यटन स्थल है।

वाडिया इंस्टीट्यूट :

जनरल माधवसिंह रोड पर घंटाघर से 5 कि.मी. दूर पहाड़ी के ऊपर स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट उत्तराखंड ग्लेशियर का एक अनोखा म्यूजियम है।

Tuesday, December 1, 2009

नैनीताल

नैनीताल


अपने आसपास झीलों के समूह (भीम ताल, सात ताल, नौकुचिया ताल और वस्तुत:, नैनी) के कारण झीलों के शहर नैनीताल को एक उत्कृष्ट नगीना कहा जाता है। अन्य रूप में भारत का पहला राष्ट्रीय पार्क-कॉर्बेट, टिम्बर व्यापार के लिए प्रसिद्ध और कुमाऊं क्षेत्र का संपर्क रेलवे स्टेशन काठगोदाम, प्रमुख फल-मार्किट भोवाली और उपजाऊ गेहूं क्षेत्र तथा जिम कार्बेट का घर कालाडूंगी इस जिले की अन्य पहचान हैं।
भगवान शिव की पत्नी देवी सती की बाईं आंख से निकली नैनी झील का पानी पवित्र माना जाता है। झील के किनारे स्थित नैना देवी मंदिर में प्रति वर्ष शरद ऋतु में बड़ा भारी मेला भरता है।
विभिन्न गतिविधियों का आनंद लेने वाले पर्यटकों के लिए यहां बहुत कुछ है : बोटिंग या भिन्न-भिन्न रंगों वाली नौकाएं चलाना, घुड़सवारी; छायादार पेड़ों से घिरे मार्गों की सैर; रोप-वे की सैर; और लकड़ी की बनी वस्तुओं, विभिन्न आकार की मोमबत्तियों बांस की टोकरियों की खरीदारी।
नैनी झील के चारों ओर हिमालय का शानदार दृश्य दिखाई देता है : नालना चोटी (2611 मी.) 5.6 कि.मी. - सबसे ऊंची है; लारिया कांटा (2481 मी.) 5.6 कि.मी.- दूसरी सबसे ऊंची चोटी है; स्नो-व्यू (2270 मी.) 2.4 कि.मी. - यहां तक घोड़े पर या केबल कार द्वारा पहुंचा जा सकता है ; डोरोथी सीट (2292 मी.) 4.3 कि.मी.- शहर का और इसके आसपास के क्षेत्रों का दृश्य यहां से दिखाई देता है; और लैंड्स इंग. (2118 मी.) 4.8 कि.मी.- यहां से खुर्पा ताल, एक धार्मिक केंद्र हनुमानगढ़ी (1951 मी.) 3 कि.मी. - के सुंदर दृश्य दिखाई देते हैं; स्टेट ऑब्जर्वेटरी (1951 मी.) 4 कि.मी. - एस्ट्रोनॉमिकल स्टडी का केंद्र और किलबरी (2194 मी.) 11 कि.मी. - ट्रेकिंग के लिए एक आदर्श स्थान है, इनके अलावा भी आपपास कई दर्शनीय स्थान हैं।
स्मारक एवं दर्शनीय स्थल

भीम ताल:
(1371 मी., 22 कि.मी.) नैनी से बड़ी, इस झील का नाम महाभारत ग्रंथ के एक पांडव नायक भीम के नाम पर पड़ा है। इस सुंदर रिजॉर्ट में रहने के अलावा बोटिंग और फिशिंग की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
भोवाली :

रानीखेत या अल्मोड़ा जाते हुए 11 कि.मी. दूर 1706 मी. की ऊंचाई पर यह एक प्रमुख फल-मार्किट है, यहां से केवल 3 कि.मी. दूर गोराकल है, जो गोल्लु देवता के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, कुमाऊं के लोग इनकी पूजा करते हैं।

कॉर्बेट नेशनल पार्क:
115 कि.मी. (बरास्ता कालाडूंगी) दूर भारत का प्रसिद्ध वन्य प्राणी उद्यान है। जो नामी शिकारी-जिम कार्बेट के नाम पर है। यह क्षेत्र 526 वर्ग कि.मी. में वनों से घिरा हुआ है।
यहां के वन्य प्रणाणियों में बाघ, चीता, जंगली भालू, आलसी भालू, हाथी, हिरण, अजगर और मगरमच्छ आदि शामिल हैं। पार्क में चिड़ियों की आश्चर्यजनक (585) प्रजातियां पाई गईं हैं।
जियोलीकोट :
1219 मी. 18 कि.मी. की दूरी पर यह एक हैल्थ-रिजार्ट और मधुमक्खी पालन केंद्र है। स्ट्राबेरी यहां बहुतायत में पैदा होती है। तितलियां पकड़ने वालों के लिए भी यह स्थान आकर्षण का केंद्र है।
नौकुचिया ताल:
1218 मी. 26 कि.मी. की दूरी पर यह नौ किनारों वाली झील है, जहां प्रवासी पक्षी आते हैं। झील में सैर करने के लिए यहां यॉच और पैडल-बोट दोनों उपलब्ध हैं।

रामगढ़ :
25 कि.मी. की दूरी पर यह स्थान कुमाऊं के बागानों के लिए जाना जाता है। यहां समृद्ध एस्टेट देखे जा सकते हैं।

सात ताल:
21 कि.मी. की दूरी पर मुख्य रिजॉर्ट के निकट तीन झीलें है ( मूल सात झीलों में से) जो भगवान राम, सीता और लक्ष्मण के नामों पर हैं। अन्य झीलें कुछ दूरी पर हैं।

रानीखेत

रानीखेत शहर मार्गदर्शिका


रानीखेत वह स्थान है, जहां से सर्वगिक हिमालय, हरे-भरे वन, शानदार पर्वत, नज़ाकत लिए पौधे और शानदार वन्य प्राणी सबसे अच्छी तरह देखे जा सकते हैं। प्रकृति और इसके तत्वों को पूरे शबाब में देखने के लिए, रानीखेत आदर्श स्थान है। ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान ने राजा सुधारदेव की रानी पद्मिनी का मन मोह लिया था। रानी ने इस स्थान को अपना निवास बना लिया, तभी से इसे रानीखेत, अर्थात् "क्वीन्स फील्ड" कहा जाने लगा। समुद्र तल से 1829 मी. की ऊंचाई पर स्थित यह हिल रिज़ार्ट निसंदेह पर्यटकों का स्वर्ग है। पहाड़ों से आती सुगंधित हवा, ताज़ा और शुद्ध होती है, चिड़ियों की चहचहाट, हिमालय की सुदंर दृश्यावली - देखने वाले को अवाक कर देती हैं।
वर्षा के दिनों में, इंद्रधनुषी रंगों के फूल चारों ओर खिल जाते हैं, पेड़ों की टहनियां फूलों से लद जाती हैं और बादलों से आंख-मिचौनी करती धूप पूरे रानीखेत में शानदार प्रभाव छोड़ती है।
जैसे ही सर्दी आती है, मुलायम रूप में गिरती बर्फ पूरे वातावरण को बर्फ की सफेद चादर में लपेट लेती है। प्रत्येक मौसम की अपनी अलग पहचान है। और कुल मिलाकर यह सब रानीखेत को हरेक-मौसम का गंतव्य स्थल बना देता है।
कैंटोनमेंट (यह स्थान ब्रिटिश सैनिकों के लिए एक हिल स्टेशन के रूप में चुना गया था और तदनुसार 1869 में यहां कैंटोनमेंट की स्थापना हुई थी) होने के कारण, कुमाऊं रेजमेंटल सेंटर, म्यूजियम और मेमोरियल रानीखेत की शान हैं।

स्मारक एवं दर्शनीय स्थल

चौबितया गार्डन :

फलों के पेड़ो, विशेषकर सेब के पेड़ो से लदा यह प्रकृतिक स्थान रानीखेत से 10 कि.मी. की दूरी पर है, जो अपनी फ्रूट-बैल्ट और फल अनुसंधान केंद्र के लिए प्रसिदंध है।

भालूदाम :
चौबतिया गार्डन से 3 कि.मी. दूर यह छोटा सा आर्टिफिशियल लेबल पूरे वर्ष पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना रहता है।

उपत कलिका :


अल्मोड़ा की ओर जाने वाली मुख्य सड़क पर शहर से 6 कि.मी. की दूरी पर इस स्थान पर देश के सबसे बेहतर माउंटेन गोल्फ लिंक (होल्स) हैं, जो चारों ओर से ओक के घने जंगलों से घिरा है।

द्वाराहाट:
रानीखेत से 38 कि.मी. दूर यह स्थान कभी कटयूरी राजाओं का स्थान रहा था। द्वाराहाट में में प्राचीन मूर्तियां बहुतायत में है।

Monday, November 30, 2009

हिमाचल प्रदेश:मनाली

हिमाचल प्रदेश:मनाली




कुल्लू से 40 कि.मी. उत्तर लेह को जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर घाटी केछोर पर स्थित है मनाली। यहां की दृश्यावली बहुत सुंदर है। यहां आप हिमाच्छादित चोटियां, शहर के बीच से बहती साफ पानी वाली ब्यास नदी को देख सकते हैं। दूसरी और चीड़ और देवदार के पेड़, छोटे-छोटे खेत और फलों के बागान हैं। छुट्टियां बिताने के लिए यह एक शानदार जगह है, पर्वतारोहण के शौकीनों के लिए कश्मीर घाटी में लाहौल, स्पीति, किन्नौर, लेह और जांसकर तक जाने के लिए यह एक लोकप्रिय स्थान है। इसे भारत का स्विटरजरलैंड भी कहा जाता है।



स्मारक एवं दर्शनीय स्थल

हडिम्बा मंदिर :




मनाली में कई आकर्षक स्थल हैं, किंतु ऐतिहासिक और पुरातात्विक रूप से निसंदेह, महाभारत के भीम की पत्नी, देवी हडिम्बा को समर्पित ढूंगरी मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। पेगोडा के आकार इस चार-मंजिला छत वाले मंदिर के द्वार पर पौराणिक आकृतियां और प्रतीक बने हुए हैं। यह मंदिर टूरिस्ट कार्यालय से लगभग 2.5 कि.मी. की दूरी पर देवदार के जंगलों के बीच स्थित है। 1533 ई. में बने इस मंदिर में आना एक सुखद अनुभव है। प्रति वर्ष मई के महीने में यहां बड़ा मेला लगता है।



मनु मंदिर :


पुराने मनाली शहर में बड़े बाजार से 3 कि.मी. दूर मनु ऋषि का मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि यह भारत में मनु ऋषि, जिन्हें धरती पर मानव जीवन का सृजनकर्ता माना जाता है, का एकमात्र मंदिर है।






क्लब हाउस :

शहर से 2 कि.मी. दूर मनाल्शु नाले के बाएं किनारे पर स्थित क्लब हाउस में इंडोर खेल सुविधाएं मौजूद हैं। इसके आसपास कुछ पिकनिक स्पॉट भी हैं।







तिब्बती मठ :

यहां 3 नवनिर्मित विविध रंगों से सजे मठ हैं, जहां से कारपेट और तिब्बती हस्तशिल्प खरीदे जा सकते हैं। दो मठ शहर में स्थित हैं और एक मठ आलियो, ब्यास नदी के बाएं किनारे स्थित है।

माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट :



कुल्लू की ओर जाने वाले मार्ग पर 3 कि.मी. दूर ब्यास नदी के बाएं किनारे पर स्थित है। इस इंस्टीट्यूट में ट्रेकिंग, माउंटेनियरिंग, स्कीइंग और वाटर-स्पोर्ट्स से संबंधित बेसिक और एडवांस प्रशिक्षण पाठ्क्रम आयोजित किए जाते हैं। अग्रिम बुकिंग द्वारा यहां से ट्रेकिंग और स्कीइंग के उपकरण किराये पर लिए जा सकते हैं। पर्यटक यहां का बेहतरीन शो-रूम भी देख सकते हैं।

वशिष्ठ के गर्म जल के झरने और मंदिर (3 कि.मी.) :


रोहतांग-दर्रा जाते हुए ब्यास नदी के बाएं किनारे पर एक छोटा सा दर्शनीय गांव है, वशिष्ठ। यह अपने गर्मजल के झरनों और मंदिरों के लिए जाना जाता है। इसके पास ही पिराममिड के आकार का पत्थरों से बना वशिष्ठ मुनि का मंदिर है। यहां भगवान राम का भी एक मंदिर है। गर्मजल केप्राकृतिक सल्फरयुक्त झरनों पर पुरुषों और महिलाओं के स्नान केलिए अलग-अलग तालाब बने हैं, जहां सदैव पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। पास में ही तुर्की स्टाइल के फव्वारों से युक्त स्नानघर भी बने हुए हैं। स्नान के लिए झरनों से गर्म जल की व्यवस्था की गई है।

नेहरु कुंड:
लेह की ओर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर 5 कि.मी. की दूरी पर ठंडे पानी का एक प्राकृतिक झरना है, जो पं. जवाहरलाल नेहरु के नाम पर है, अपने मनाली प्रवास के दौरान वे इसी झरने का पानी पिया करते थे। माना जाता है कि यह झरना ऊंचे पहाड़ों में स्थित भृगु झील से अवतरित हुआ है।

सोलांग घाटी :


13 कि.मी. दूर सोलांग गांव और ब्यास कुंड के बीच यह एक शानदार घाटी है। सोलांग घाटी से ग्लेशशियर और हिमाच्छादित पर्वत और चोटियां दिखाई देती हैं। यहां स्कीइंग के लिए शानदार ढाल हैं। माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट ने प्रशिक्षण के उद्देश्य से यहां एक स्की-लिफ्ट लगाई है। यहां मनाली का माउंटेनियरिंग और एलाइट स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट है। अब यहां कुछ होटल भी बन गए हैं। यहां विंटर स्कीइंग फेस्टिवल आयोजित किया जाता है। इस जगह स्कीइंग का प्रशिक्षण दिया जाता है।


कोठी :

रोहतांग-दर्रा जाते हुए, मनाली से 12 कि.मी. दूर कोठी एक सुंदर दृश्यावली वाला स्थान है। यहां रिज पर पी.डब्ल्यू.पी. का रेस्ट हाउस बना है, जहां से संकरी होती घाटी और पहाड़ों का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। यहां बड़ी संख्या में फिल्मों की शूटिंग होती है तथा कवियों, लेखकों और शांत माहौल पसंद करने वालों के लिए यह एक आदर्श स्थान है।

रहाला जल-प्रपात:

रोहतांग-दर्रा जाते हुए, मनाली से 16 कि.मी. दूर है। यदि आप कोठी से पुराने रोड पर पैदल मरही की ओर जाएं तो आपको जल-प्रपात का शानदार नजारा दिखेगा। यह एक सुंदर पिकनिक स्पॉट भी है।

रोहतांग-दर्रा (3979 मी.):


रोहतांग-दर्रा कीलोंग/लेह राजमार्ग पर मनाली से 51 कि.मी. दूर है। यहां से पहाड़ों का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। यह दर्रा प्रति वर्ष जून से अक्तूबर तक खुला रहता है किंतु पर्वतारोही इसे पहले भी पार करते हैं। यह लाहौल स्पीति, पांगी और लेह घाटियों का प्रवेश-द्वार है, जैसे जोजिला-पास लद्दाख का प्रवेश-द्वार है। यहां से ग्लेशियरों, चोटियों और लाहौल घाटी से बहती चंद्रा नदी के सुंदर दृश्य दिखाई देते हैं। यहां थोड़ी बाईं ओर गेपान की जुड़वां चोटियां हैं। गर्मियों के दौरान (मध्य जून से अक्तूबर) मनाली-कीलोंग/दारचा, उदयपुर, स्पीति और लेह के बीच बसें चलती हैं।

अर्जुन गुफा :

मनाली से 4 कि.मी. दूर, नग्गर की ओर जाते हुए सड़क से 1 कि.मी. ऊपर प्रिनी गांव के निकट एक गुफा है, जहां अर्जुन ने तपस्या की थी। पहाड़ों का सुंदर दृश्य देखने के लिए यहां 1/2 दिन की अच्छी कसरत हो जाती है।

जगतसुख :

जगतसुख मनाली से 6 कि.मी. दूर नग्गर की ओर जाते हुए ब्यास नदी के बाएं किनारे पर स्थित है। यह स्थान शिखर रूप में बने भगवान शिव और संध्या गायत्री के दर्शनीय प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।

हिमाचल प्रदेश; कुल्लू

हिमाचल प्रदेश; कुल्लू

बहुत आकर्षक और सुंदर कुल्लू घाटी ब्यास नदी के दोनों ओर फैली है। यह घाटी नदी के उत्तर से दक्षिण की ओर फैली है तथा क्षेत्रफल में 80 कि.मी. लंबी और लगभग 2 कि.मी. चौड़ी है। सुंदर घाटियों और बहते जलप्रवाह, पूर्व तथा पश्चिम में छोटी-छोटी नदियों से घिरे घास के मैदान, पर्यटकों ट्रेकिंग और माउंटेनियरिंग के शौकीनों तथा मैदानों की धूल और गर्मी से तंग आए लोगों को आकर्षित करते हैं, जो हिमालय की स्वच्छ हवा में सांस लेना चाहते हैं और पहाड़ों की सुंदर दृश्यावली देखना चाहते हैं। यह घाटी खास तौर पर हाथ की बनी रंगीन शालों और कुल्लू टोपियों के लिए प्रसिद्ध है।
स्मारक एवं दर्शनीय स्थल

बिजली महादेव मंदिर (2460 मी.):

कुल्लू से 10 कि.मी. दूर ब्यास नदी के पार, बिजली महादेव मंदिर, मंदिरों से भरे इस जिले में, एक आकर्षक मंदिर है। 10 कि.मी. लंबे रास्ते से यहां पहुंचा जा सकता है। मंदिर से कुल्लू और पार्वती घाटियों का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। बिजली महादेव मंदिर का 60 फुट ऊंचा स्तंभ सूर्य के प्रकाश में चांदी की सुई के समान चमकता दिखाई देता है। कहा जाता है कि यह ऊंचा स्तंभ प्रकाश के रूप में पवित्र आशीष प्रदान करता है। शेष कथा मंदिर के पुजारी से सुनी जा सकती है, जो अविश्वसनीय किंतु सत्य है।
रघुनाथजी मंदिर:

धौलपुर से 1 कि.मी. दूर रघुनाथजी इस घाटी के मुख्य देवता हैं।

वैष्णों देवी मंदिर:
धौलपुर से 4 कि.मी. दूर, एक छोटी सी गुफा में माता वैष्णों देवी का मंदिर है।

कैंपिंग साइट रायसन (1433 मी.):
कुल्लू से 16 कि.मी. दूर प्रकृति के नजारों के बीच यह स्थान छुट्टियां बिताने और यूथ कैंपों के आयोजन के लिए आदर्श है। घाटी के इस भाग में बड़ी संख्या में बागान हैं। हि.प्र.प.वि.नि. ने यहां ठहरने के लिए आरामदेह लॉग-केबिन बनाए हुए हैं।

कटरैन (1463 मी.) :

घाटी का मध्यवर्ती और सबसे खुला क्षेत्र, कटरैन, मनाली के रास्ते में कुल्लू से 20 कि.मी. दूर है। सेब के बागान और ट्राउट-हेचरी यहां के मुख्य आकर्षण हैं। यहां स्थित पातिलकुल्ह सरकारी ट्राउट-फार्म मधुमक्खी पालन के लिए प्रसिद्ध है। यहां हि.प्र.प.वि.नि. के होटलों में ठहरा जा सकता है।
नग्गर (1760 मी.) :
ब्यास नदी के बाएं किनारे पर, नग्गर एक शानदार जंगलों की ढाल पर स्थित एक सुंदर स्थान है। 1400 वर्ष पहले यह तत्कालीन कुल्लू की राजधानी हुआ करता था। यहां बड़ी संख्या में प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनमें विष्णु, त्रिपुरा सुंदरी एवं भगवान कृष्ण का मंदिर मुख्य हैं। कार और जीपें आसानी से नग्गर कैसल तक जाती है। चंद्रखानी-पास और दूर मलाना घाटी तक जाने के लिए नग्गर एक बेस है।

कासोल (1640 मी.):

कुल्लू से 42 कि.मी. दूर, पार्वती नदी के किनारे, कासोल छुट्टियां बिताने की एक अच्छी जगह है। सुंदर खुले स्थान पर कासोल में पहाड़ी की ढाल पार्वती नदी केदूर तक फैले सफेद रेतीले क्षेत्र तक जाती हैं। यह क्षेत्र ट्राउट-फिशिंग के लिए जाना जाता है।
मनीकरन (1700 मी.) :
कुल्लू से 45 कि.मी. एवं कासोल के मात्र 3 कि.मी. दूर, मनीकरन अपने गर्म पानी के झरनों के लिए प्रसिद्ध है। हजारों लोग यहां गर्म पानी के झरनों मे डुबकी लगाते हैं। यहां का पानी इतना गर्म होता है कि उसमें दाल, चावल, सब्जी आदि तक पकाए जा सकते हैं। यह स्थान हिंदुओं और सिक्खों के तीर्थस्थलों केरूप में भी प्रसिद्ध है। भगवान राम और शिव मंदिरों के अलावा यहां एक गुरुद्वारा भी है। एक पुरानी कहावत के अनुसार, मनीकरन का नाम भगवान शिव और पार्वती से जुड़ा है, यहां मां पार्वती के कान की बाली गुम हो गई थी, जिस कारण पार्वती नदी के किनारे गर्म पानी का एक स्रोत बन गया। यहां पुजारियों के मुख से यह कथा सुनना अधिक लाभकारी और आनंददायक है। मंदिरों और गुरुद्वारे में ठहरने की पर्याप्त जगह है। इसके अलावा यहां हि.प्र.प.वि.नि. के होटल में ठहरा जा सकता है।

मलाना (2652 मी.):
सुंदर चंद्रखानी-पास से थोड़ा आगे मलाना गांव है, जो जामलु के मंदिर और अपनी विशेष सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन शैली केलिए जाना जाता है। माना जाता है कि मलाना विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र है। यहां की जीवन-शैली और सामाजिक व्यवस्था को जानने के लिए इस गांव की यात्रा श्रेयस्कर होगी।

बाजौरा :
कुल्लू से 15 कि.मी. पहले बाजौरा मुख्य सड़क पर स्थित है, जहां गांव से लगभग 200 मी. दूर खिले स्थान में मुख्य सड़क और ब्यास नदी के बीच बालेश्वर महादेव मंदिर है। माना जाता है कि यह मंदिर 8वीं शताब्दी के मध्य में बना था।

लार्जी (957 मी.):
कुल्लू के दक्षिण में 34 कि.मी. दूर एक छोटा सा स्थान, जो ट्राउट-फिशिंग के लिए जाना जाता है। यहां एक स्तब्ध कर देने वाले स्थान पर पीडब्ल्यूडी का रेस्ट हाउस है, जो सैंज और तीर्थन नदियों केसंगम पर बना है, यहां के बाद ये नदियां ब्यास में मिल जाती हैं। इस स्थान पर अधिकांशत: मछली पकड़ने वालों की भीड़ लगी रहती है।

बंजर (1524 मी.):
कुल्लू के दक्षिण में 58 कि.मी. दूर, यह स्थान तीर्थन नदी के जल में मछली पकड़ने के लिए अच्छा माना जाता है।

हिमाचल प्रदेश:धर्मशाला

धर्मशाला:हिमाचल प्रदेश


धर्मशाला कांगड़ा जिले का जिला मुख्यालय है। यह एक हिल स्टेशन है जो कांगड़ा शहर से लगभग 18 कि.मी. दूर पूर्वोत्तर दिशा में धौलाधार पर्वत श्रंखला के विस्तार में स्थित है। इस हिल स्टेशन में ओक और नुकीली पत्तियों वाले वृक्षों के वन हैं तथा शहर के तीनों ओर हिमाच्छादित पर्वत हैं, जबकि सामने की ओर घाटी फैली हुई है। शायद धर्मशाला ही ऐसा हिल स्टेशन है जहां किसी अन्य हिल रिज़ार्ट की अपेक्षाकृत अधिक बड़ी स्नो-लाइन देखी जा सकती है और यदि सुबह जल्दी यात्रा आरंभ की जाए तो स्नो-प्वाइंट पर पहुंचना संभव है।
1905 में, एक दुखद घटना घटी, जब भूकंप ने इस शहर को पूरी तरह से लील दिया था। पुनर्निर्माण के बाद धर्मशाला एक शांत रिज़ार्ट के रूप में फला-फूला। इसे दो अलग-अलग विशेष भागों में बांटा गया है। लोअर धर्मशाला में सिविल कार्यालय और व्यावसायिक संस्थानों के साथ-साथ न्यायालय तथा कोतवाली बाज़ार हैं तथा अपर धर्मशाला में वे नाम दिखाई देते हैं जो इसके इतिहास से मेल खाते हैं। जैसे मेकलॉड गंज और फॉरबिस गंज। 1960 से, जब धर्मशाला माननीय दलाई लामा का अस्थाई मुख्यालय बना था, इस स्थान को "लिटिल ल्हासा इन इंडिया" के रूप में अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली है।
स्मारक एवं दर्शनीय स्थल
मेकलॉड गंज :
यहां अनेक आवासीय भवन, रेस्टोरेंट, एंटीक और क्यूरियों शॉप्स के साथ-साथ प्रसिद्ध तिब्बती संस्था हैं, जो मेकलॉड गंज का महत्व बढ़ाते हैं। पवित्र गुरु दलाई लामा के वर्तमान निवास स्थान के सामने बुद्ध मंदिर दर्शनीय है। तिब्बती इंसटीट्यूट ऑफ परफार्मिंग आर्ट्स (TIPA) मेकलॉड गंज से 1 कि.मी. की पैदल दूरी पर है जहां तिब्बती नृत्य और थियेटर कला की अनेक परंपराओं को संजोकर रखा गया है। यहां अप्रैल माह के दूसरे शनिवार को 10 दिवसीय लोकनृत्य ओपेरा का आयोजन किया जाता है। मेकलॉड गंज में एक तिब्बती हस्तशिल्प केंद्र भी है और यहां से लगभग 10 मिनट की पैदल दूरी पर रविवार के दिन लगने वाला स्थानीय बाज़ार भी है।
भागसुनाग फॉल्स :
लोअर धर्मशाला से 11 कि.मी. दूर भागसुनाग तक सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है, यहां एक पुराना मंदिर, ताज पानी का झरना और एक रेस्टोरेंट भी है। यहां से 2 कि.मी. आगे खूबसूरत भागसुनाग फॉल्स है, जो देखने लायक है।
सेंट जॉन चर्च :
जंगल में स्थित सेंट जॉन चर्च तक लोअर धर्मशाला से मेकलॉड गंज और फॉरिस्ट गंज के बीच 8 कि.मी. सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। यहां भारत के पूर्व वॉयसराय लार्ड एल्गिन का एक स्मारक है, जिसे 1863 में मृत्यु के बाद यहां दफनाया गया था।
डल झील :
लोअर धर्मशाला से सड़के मार्ग से 11 कि.मी. दूर यह झील पहाड़ियों और फर के ऊंचे पेड़ों से घिरी है। तिब्बती बच्चों के गांव के समीप स्थित धर्मशाला से बाहर जाने तथा ट्रेकिंग के लिए यह आरंभिक स्थान है।
धर्मकोट :
धर्मशाला से 11 कि.मी. दूर यह स्थान दूर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। इस पिकनिक स्पॉट से कांगड़ा घाटी , पोंग डैम लेक और धौलाधार श्रंखला का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।
त्रिउंड (2975 मी.):
धर्मशाला से 20 कि.मी. दूर त्रिउंड 2975 मी. की ऊंचाई पर सदैव बर्फ से ढकी धौलाधार पर्वतों की तलहटी में स्थित है। त्रिउंड से 5 कि.मी. दूर क्षेत्र से स्नो-लाइन आरंभ होती है। यह एक प्रसिद्ध पिकनिक और ट्रेकिंग स्पॉट है। यहां वन विभाग के रेस्ट-हाउस में ठहरा जा सकता है, किंतु पानी लाने के लिए यहां से 2 कि.मी. दूर जाना पड़ता है। धर्मशाला से इस स्थान तक रोप-वे का निर्माण किया जा रहा है।
युद्ध स्मारक :
सुंदर दृश्यावली से घिरा यह स्मारक धर्मशाला के प्रवेश स्थल के समीप है। अपनी मातृभूमि की रक्षा में बहादुरी से लड़े वीरों की स्मृति में यह स्मारक बनाया गया है।
कुणाल पाथरी :
कोतवाली बाज़ार से 3 कि.मी. की समतल सड़क यात्रा के बाद चट्टान पर बने स्थानीय देवी के इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
कारेड़ी :
कोतवाली बाज़ार से 22 कि.मी. दूर इस रेस्ट हाउस में रात्रि-प्रवास किया जा सकता है। रेस्ट हाउस से 13 कि.मी. दूर स्थित कारेड़ी झील दर्शनीय है। यहां दुर्वासा और काली के मंदिर हैं।
ज्वालामुखी मंदिर :
ज्वालामुखी का प्रसिद्ध मंदिर कांगड़ा से 30 कि.मी. और धर्मशाला से 56 कि.मी. दूर स्थित है। "प्रकाश की देवी" को समर्पित यह उत्तर भारत के प्रसिद्ध हिंदु मंदिरों में सेे एक है। यहां किसी प्रकार की कोई मूर्ति नहीं है, केवल आग की लपट को देवी का रूप माना जाता है। श्रद्धालुभक्त प्राकृतिक रूप से पवित्र चट्टान से प्रकट होने वाली जलती और चमकीली नीली लौ की पूजा करते हैं। मंदिर का सोने का छतर सम्राट अकबर की भेंट है। अप्रैल माह के आरंभ में और अक्तूबर माह के मध्य नवरात्रों में यहा दो महत्वपूर्ण मेलों का आयोजन होता है। यात्रियों के ठहरने के लिए यहां आधुनिक सुविधाओं वाले होटल, धर्मशालाएं, विश्राम गृह और हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम के होटल हैं। (कृपया मंदिर की विशेष रूप से बनी वेबसाइट देखें)।
डेहरा गोपीपुर :
यह ब्यास नदी के किनारे स्थित है। आसपास के विभिन्न क्षेत्रों जैसे पोंग डैम, पाटन, कुर्न और नादौन के लिए डेहरा का एक बेस के रूप में उपयोग संभव है। यहां से प्रसिद्ध चिन्तपूर्णी मंदिर के दशर्नार्थ भी जा सकते हैं।
त्रिलोकपुर :
यह स्थान धर्मशाला से 41 कि.मी. दूर है और सड़क मार्ग से त्रिलोकपुर के पवित्र गुफा मंदिर पहुंचा जा सकता है। यहां भगवान शिव को समर्पित स्टेलेटिट और स्टेलेगेमिट हैं। गुफा के ऊपर एक महल और बारादरी के अवशेष हैं। यह महल सिख शासन के दौरान कांगड़ा पहाड़ी के गवर्नर लहना सिंह मजीठा का है।
नूरपुर :
धर्मशाला से 66 कि.मी. दूर स्थित नूरपुर अपने प्राचीन किले और ब्रजराज मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। नूरपुर का नाम 1762 में उस समय पड़ा जब मुगल सम्राट जहांगीर ने इसे अपनी पत्नी नूरजहां का नाम दिया। नूरपुरी शालें अच्छी होती हैं। यात्रियों के ठहरने के लिए यहां लोक निर्माण विभाग का रेस्ट हाउस है।
मसरुर :
अपने मोनोलिथिक रॉक मंदिरों के लिए प्रसिद्ध मसरुर कांगड़ा के 15 कि.मी. दक्षिण में स्थित है। यहां चट्टानों को काटकर बनाए गए इंडो-आर्यन शैली के शानदार नक्काशी वाले 15 मंदिर हैं। आंशिक रूप से खंडहर हो चुके ये मंदिर शिल्पकला से निर्मित अलंकरणों से सुसज्जित हैं। इन्हें इस तरह बनाया गया है कि ये महाराष्ट्र स्थित एलौरा के महान कैलाश मंदिर की झलक देते हैं। मुख्य मंदिर भगवान राम, लक्ष्मण और सीता को समर्पित है।

Saturday, November 28, 2009

हिमाचल प्रदेश:किन्‍नौर






किन्‍नौर का परिचय हिमाचल प्रदेश का एक जनजातीय जिला किन्नौर ६,४०७ कि.मी. में फैला एक ऐसा स्थान जहाँ का इतिहास बहुत प्राचीन हैं। यहां बहने वाली सतलज नदी के किनारे-किनारे चलकर ही किन्नौर यात्रा का आनंद लिया जा सकता हैं। यहाँ से भारत का सबसे महत्वपूर्ण वं संवेदनशील ‘हिन्दुस्तान-तिब्बत मार्ग‘ गुजरता हैं। संवेदनशील होने के कारण पर्यटकों को इस क्षेत्र में भ्रमण के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार से परिमट जारी कराना पडता हैं। शिमला से किन्नौर भ्रमण करते हुएद्व लाहुल-स्पिति से होते हुए मनाली पहुंचा जा सकता हैं।



दर्शनीय पर्यटन स्‍थल




सांगला

सांगला (२,८६० मी.) किन्नौर क्षेत्र में सबसे बडा एवं दर्शनीय गांव हैं, जो करचम से १८ कि.मी. दूर हैं। यहां केसर के खेत, फलोद्यान और ऊपर जाने पर आल्पस के चरागाह हैं। किन्नौर कैलाश चोटी मन मोह लेती हैं। यहां से काली देवी का किले जैसा मंदिर ‘कमरू फोर्ट‘ भी देखा जा सकता हैं।.

करचम


करचम (१८९९ मी.) सतलज और बस्पा नदियों के संगम स्थल जोअरी, वांग्तु और तापरी गांवों के बाद आता हैं, जहाँ से सुन्दर बस्पा और सांगला घाटी प्रारंभ होती हैं।......






चिटकुल

चिटकुल (३,४५० मी.) सांगला घाटी में अंतिम गांव हैं, जो सांगला से २६ कि.मी. दूर स्थित हैं। भोजपत्र नामक वृक्षों के जंगलों से घिराद्व यह आल्पस के खूबसूरत चरागाहों और हिम भूदृश्यों के लिए जाना जाता हैं।...... 
पोवारी
पोवारी रामपुर से ७० कि.मी. दूर राष्ट्रीय राजमार्ग २२ पर अंतिम मुख्य ठहराव हैं।......


रिकोग पिओ



रिकोग पिओ (२६७० मी.) शिमला से २३१ कि.मी. और पोवारी से ७ कि.मी. दूर स्थित, किन्नौर जिले का मुख्यालय हैं। यहाँ स्थित उप-जिला मुख्यालय से किन्नौर घाटी में पर्यटन हेतु अनुमति ली जा सकती हैं। निकट ही भगवान बुद्ध की प्रतिमायुक्त कालाचक्र मंदिर से किन्नौर कैलाश का सुन्दर दृश्य दिखाई देता हैं।......

कोठी



कोठी, रिकोंग पिओ से मात्र ३ कि.मी. दूर स्थित हैं, जहां चंडिका देवी का मंदिर हैं। पहाडों की गोद और देवदार के झुरमुट के बीच स्थापित इस मंदिर की शैली और शिल्प असाधारण हैं। देवी की स्वर्ण-निर्मित प्रतिमा अप्रतिम हैं।......




कल्पा



कल्पा रिकोंग पिओ से ७ कि.मी. दूर स्थित ह। नदी के पार, कल्पा के सामने किन्नर कैलाश श्रृंखला हैं। भोर के समय जब उगत सूर्य की लाल और हल्की सुनहरी रश्मियां हिमानी चौटियों की चूमती हैं तो वह दृश्य बडा नयनाभिराम होता हैं।......
पांगी
पांगी रिकोंग पिओ से चिलगोजा चीड के जंगलों से गुजरते हुए १० कि.मी. दूर स्थित हैं। यह सेब के उद्यानों से घिरा हैं, जहां बुद्ध मंदिर, शेशरी नाग मंदिर दर्शनीय हैं।......






रिब्बा


रिब्बा पोवारी से १६ कि.मी. दूर राष्ट्रीय राजमार्ग २२ पर स्थित, अपने अंगूर के बगीचों और अंगूर से बनाई गई स्थानीय शराब ‘अंगूरी‘ के लिए मशहूर है।......


मूरांग
मूरांग राष्ट्रीय राजमार्ग २२ पर पोवारी से २६ कि.मी. दूर, खूबानी की वाटिकाओं के मध्य स्थित हैं।......


पुह


पुह राष्ट्रीय राजमार्ग २२ पर पोवारी से ५८ कि.मी. दूर स्थित हैं जहां हरियाले खेत, खूबानी व अंगूर के बगीचे और बादाम के उद्यान देखे जा सकते हैं। यहां ठहरने की आरामदायक सुविधाएं हैं।......
नाको
नाको राष्ट्रीय राजमार्ग २२ से थोडा अलग यांगथांग लिंक रोड पर खूबसूरत गांव हैं, जो निर्जन हांगरांग घाटी का सबसे बडा गांव हैं।......


चांगो एवं लियों


चांगो एवं लियों सेब के उद्यानों से भरपूर हैं। चाँगो में बुद्ध मठ भी स्थित है।......



सुमधो


सुमधो स्पिति एवं पारे-चू नदियों के संगम स्थल पर स्थित, किन्नौर का अंतिम गाँव हैं।......


ठहरने हेतुः



स्बाला गेस्ट हाउस, रेकोंग पिओ, फोन २२२८५२
होटल बंजारा, सांगला, फोन ६५१३८२८
रूपिन रीवर गेस्ट हाउस, सांगला फोन २४४२२५, २४४२०५
किन्नर कैलाश कॉटेज, कल्पा फोन २२६१५९
शिवालिका गेस्ट हाउस, कल्पा फोन २२६१५८
पी.डब्ल्यूडी रेस्ट हाउस तथा फोरेस्ट गेस्ट हॉउस उपलब्ल हैं
ट्रेवल एजेन्ट
स्नोलाईन ट्रावेल्स, छोलिंग, फोन २५३१८७
नेशनल ट्रेवलर, रेकोगं पिओ, फोन २२२२४८





















Wednesday, November 25, 2009

डलहौजी (हिमाचल प्रदेश)/ चंबा

डलहौजी (हिमाचल प्रदेश)
जिस प्रकार हिमाचल प्रदेश के शिमला नगर को बसाने का श्रेय लेफ्टिनेंट रास (1819) व ले. कैंडी 1821 को जाता है। उसी तरह डलहौजी जैसे जंगली क्षेत्र को लार्ड डलहौजी (1854) ने बसाकर अंग्रेजों की ठण्डे पहाड़ और एकांत स्थल में रहने की इच्छा को पूरा किया।
सन् 1850 में चंबा नरेश और ब्रिटिश शासकों के बीच डलहौजी के लिए एक पट्टे पर हस्ताक्षर हुए थे। लार्ड डलहौजी यहां रहने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्हीं के नाम पर इस स्थान का नाम डलहौजी रखा गया।समुद्रतल से 2039 मीटर ऊंचाई पर स्थित डलहौजी 13 किमी में फैला एक ऐसा हरयावल टापू है जहां कुछ दिन गुजारना स्वयं में अनोखा अनुभव है। पांच पहाडिय़ों बेलम, काठगोल, पोटरेन, टिहरी और बकरोता से घिरा डलहौजी सुन्दर और स्वच्छ शहर है। यहां हिन्दी, पंजाबी, तिब्बती और अंग्रेजी भाषी लोग रहते हैं।डलहौजी देवदार के घने जंगलों में घिरा हिमाचल का प्रमुख पर्यटक स्थल है। यहां की ऊंची-नीची पहाडिय़ों पर घूमते हुए पर्यटक रोमांचित हो उठता है। पहाडिय़ों के बीच कल-कल बहती चिनाब, ब्यास और राबी नदियां, दूर-दूर तक फैली बर्फीली चोटियां डलहौजी की रमणीयता को चार चांद लगा देती है। पंडित जवाहर लाल नेहरू को डलहौजी बहुत पसंद था। वे इसे हिमाचल की गुलमर्ग कहते थे।


सत्तधारा - डलहौजी से डेढ़ किलोमीटर दूर सतधारा नाम का चश्मा है। पहले यहां सात धाराएं बहती थीं पर अब एक मोटी दार ही रह गई है। यह जल कई रोगों को निवारण करता है। यहां पर्यटक विभाग का कैफेटेरिया है जहां पर्यटक चाय नाश्ता कर तरोताजा होते है।



पंचपुला - यहां के बड़े डाकघर से दो किमी की दूरी पर स्थित पंचपुला एक सुंंदर सैरगाह है। पंचपुला का अर्थ है पांच पुल। इन छोटे-छोटे पांच पुलों के नीचे से कल-कल बहती जलधारा देखने योग्य है। यहां एक प्राकृतिक जलकुंड भी है, जिसके निर्मल जल में चमकते पत्थर बहुत आकर्षक लगते हैं।


अजीत सिंह की समाधि - डलहौजी का विशेष आकर्षण बीसवी शताब्दी के पितामह अजीत सिंह की समाधि है। सन् 1905 में जब सारे पंजाब की पुलिस उनके पीछे लगी थी तब अजीत सिंह, जो शहीद भगत सिंह के चाचा थे, मुसलमान के वेष में यहां पहुंचे थे। यहीं के काबुल के रास्ते ईरान, इटली, ब्राजील में देश की सेवा करते रहे। चालीस वर्षों तक देश के बाहर रहने के बाद 1946 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें स्वदेश बुला लिया। 14 अगस्त 1947 को अजीत सिंह डलहौजी में थे। उन्होंने रात 12 बजे भारत के स्वतंत्र होने की घोषणा सुनी और सुबह पांच बजे शरीर त्याग दिया। अजीत सिंह की समाधि आज भी देश प्रेमियों को उस बहादुर सपूत की याद दिलाती है।



कालाटोप - पर्यटकों के लिए डलहौजी से आठ किमी दूर और समुद्रतल से 2440 मीटर ऊंचाई पर स्थित कालाटोप सर्वोत्तम पिकनिक स्थल है। कालाटोप के प्राकृतिक दुश्य बड़े मनोरम लगते हैं। यहां भौंकने वाला हिरण और काले भालू देखने को मिलते हैं। कालाटोप तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग और रहने के लिए वन विभाग का विश्राम गृह है।


बकरोता की पहाडिय़ां - डलहौजी से पांच किमी दूर 2085 मी ऊंचाई पर बकरोता पहाडिय़ों से हिमाच्छादित चांदी से चमकते पहाड़ देखने में बड़े सुन्दर लगते हैं। प्रकृति प्रेमी इन्हें देख रोमांचित हो उठते है।


डायन कुंड - डलहौजी से दस किलोमीटर दूर 2750 मीटर ऊंचाई पर डायन कुंड स्थित है। यहां चिनाब, ब्यास और रावी नदियां पास-पास बहती है। तीनों नदियों का सांप की तरह बलखाकर बहना सैलानियों को आश्चर्य चकित कर देता है। कुदरत का ऐसा सुन्दर नजारा शायद ही कहीं अन्यत्र देखने को मिले।


सुभाष बावली - आजाद हिन्द फौज के कर्मठ नेता सुभाष चन्द्र बोस के खिलाफ कलकत्ता की प्रेसीडेंसी जेल में विष देकर उन्हेें मार देने का अंग्रेजों द्वारा सुनियोजित षडय़ंत्र चलाया जा रहा था। जब ब्रिटिश सरकार को उनकी बीमारी की सूचना मिली। तब उन्हें कुछ समय के लिए पैरोल पर रिहा किया गया। डलहौजी में नेता सुभाष बावली है। इसके पास ही नेता जी की याद में सुभाष चौक बनाया गया है। डलहौजी से यह स्थान एक किलोमीटर दूर है।


खजियार - पर्यटक डलहौजी घूमने आए और खजियार न जाए तो यात्रा अधूरी रहेगी। समुद्रतल से 1890 मीटर ऊंचाई पर स्थित खजियार पर्यटकों के लिए प्रकृति का अनुपम उपहार है। देवदार के घने ऊंचे वृक्षों के बीच डेढ़ किलोमीटर लंबा और एक किलोमीटर चौड़ा तश्तरीनुमा हरा-भरा मखमली घास का मैदान और बीच में छोटी सी झील है हालाकी झील का पानी अभी सूख गया है फिर भी यहाँ   के सौंदर्य को देखकर पर्यटक ठगा सा  रह जाता है।
खुली प्रकृति में बेखटके घुमने और चांदनी रातों में खुले आकाश के नीचे फुरशत से तम्बू में रहने वालो के लिए  खजियार अच्छी जगह है यहाँ की शाम  हर सैलानी को शुकून देती है बच्चो को दोड़ने और खुशी से चिल्लाने का मोका मिलता है यहाँ घुड़सवारी करना मनोरंजक और रोमांचकारी  है

कहाँ ठहरें :HPTDC  होटल देवदार,फ़ोन न:(236333),होटल पारूल फ़ोन न:(224344)
इन्हीं विशेषताओं के कारण 7 जुलाई 1992 के दिन स्विटजरलैंड के राज प्रतिनिधि टी बलेजर ने खजियार को मिनी स्विटजरलैंड के रूप में नामांकित किया था। खजियार को विश्व का 160 वां मिनी स्विटजरलैंड होने का गौरव प्राप्त है। डलहौजी से खजियार 27 किमी दूर है। यहां रात ठहरने और खाने पीने के लिए भव्य होटल और पर्ण कुटीरें हैं।


डलहौजी में जहां कई दर्शनीय स्थल है वहीं यहां देस के जाने-माने लोगों की यादें रची बसी है। सन् 1883 में देश के महान कवि एवं शिक्षक गुरुवर रविन्द्रनाथ टैगोर यहां रहे थे और उन्होंने डलहौजी के नैसर्गिक सौंदर्य पर मुग्ध होकर एक कविता लिखी थी। सन् 1925 में स्व. जवाहर लाल नेहरू अपने परिवार के साथ यहां रायजादा हंस राज की कोठी में ठहरे थे। पंजाबी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक नानक सिंह ने अपनी जीवन का काफी साहित्य इस शांत पहाड़ी शहर में लिखा।


कैसे पहुंचे
निकटतम हवाई अड्डा- कागंरा से 140 किमी, अमृतसर से 192 व जम्मू से 190 किमी। रेल्वे स्टेशन- पठानकोट से 80 किमी। सड़क मार्ग- दिल्ली चंडीगढ़, पठानकोट, शिमला आदि स्थानों से नियमित बसें उपलब्ध। डलहौजी में कहां ठहरें-डलहौजी में समस्त सुविधाओं से युक्त डीलक्स पांच सितारे होटलों से लेकर मध्यम श्रेणी वाले होटलों तथा गेस्ट हाउसों की श्रृंखला उपलब्ध है। डलहौजी कब जायें- उपयुक्त समय - अप्रैल से नवंबर तक|
चंबा

चंबा  डलहौज़ी से ५६ किमी  दूर है  सैलानी डलहौज़ी से चंबा दिन भर घूम कर भी शाम को वापस डलहौज़ी आ सकते है खाजिअर से चंबा केवल ४३ किमी दुरी पर है| यहाँ के रजा साहिल वर्मा ने अपनी पुत्री राजकुमारी  चम्पावती  के नाम पर इस शहर  को बसाया था| यहाँ लक्ष्मीनारायण मंदिर,रंग महल, भूरीसिंह म्युजीयम,चौगान  आदि दर्शनीय है |चंबा के गाँव और सीढीनुमा  खेत यहाँ की  यात्रा को दिलचस्प बना देते है |चंबा से आगे मणिमहेश  यात्रा प्रसिद्ध  है 
कहाँ ठहरे :होटल  इरावती (HPTDC) फ़ोन न :222671, होटल चम्पक फ़ोन न :222774,होटल अरोमा पैलेस फ़ोन न :225177,होटल जिम्मी इन फ़ोन न:224748,  होटल आर्चड हट फ़ोन न 222607

Tuesday, November 24, 2009

हिमाचल प्रदेश

हिमाचल प्रदेश का परिचय हिमालच प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा २५ जनवरी, १९७१ को मिला। इसे शिमला और आसपास की ३० पहाडी रियासतों को मिलाकर बनाया गया था। एक तरफ इस प्रदेश की ऊंची पहाडयों पर चांदी की तरह चमकती सफेद बर्फ सैलानियों का अपनी ओर आकृष्ट करती हैं तो दूसरी ओर पहाडों की गोद से उतरती रावी, व्यास, चिनाब और सतजल नदियां अलग ही छटा बिखेरती हैं। उस पर फूलों से महकते बाग-बगीचे और प्राकृतिक चरागाह इसकी गरिमा में अभिवृद्धि करते हैं। यह सैरगाह ट्रेकिंग, बर्फ पर स्केटिंग, स्कीइंग, हैंगग्लाइडिंग व पैराग्लाइडिंग जैसे रोमांचक खेलों के लिए मशहूर हैं। पहाडों पर ऊंचे-ऊंचे चीड, देवदार के पेड व जडीबूटियों की भरमार हैं।
किन्‍नौर:

किन्‍नौर का परिचय हिमाचल प्रदेश का एक जनजातीय जिला किन्नौर ६,४०७ कि.मी. में फैला एक ऐसा स्थान जहाँ का इतिहास बहुत प्राचीन हैं। यहां बहने वाली सतलज नदी के किनारे-किनारे चलकर ही किन्नौर यात्रा का आनंद लिया जा सकता हैं। यहाँ से भारत का सबसे महत्वपूर्ण वं संवेदनशील ‘हिन्दुस्तान-तिब्बत मार्ग‘ गुजरता हैं। संवेदनशील होने के कारण पर्यटकों को इस क्षेत्र में भ्रमण के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार से परिमट जारी कराना पडता हैं। शिमला से किन्नौर भ्रमण करते हुएद्व लाहुल-स्पिति से होते हुए मनाली पहुंचा जा सकता हैं।


दर्शनीय पर्यटन स्‍थल

करचम
करचम (१८९९ मी.) सतलज और बस्पा नदियों के संगम स्थल जोअरी, वांग्तु और तापरी गांवों के बाद आता हैं, जहाँ से सुन्दर बस्पा और सांगला घाटी प्रारंभ होती हैं।......
सांगला
सांगला (२,८६० मी.) किन्नौर क्षेत्र में सबसे बडा एवं दर्शनीय गांव हैं, जो करचम से १८ कि.मी. दूर हैं। यहां केसर के खेत, फलोद्यान और ऊपर जाने पर आल्पस के चरागाह हैं। किन्नौर कैलाश चोटी मन मोह लेती हैं। यहां से काली देवी का किले जैसा मंदिर ‘कमरू फोर्ट‘ भी देखा जा सकता हैं।......

ठहरने हेतुः

स्बाला गेस्ट हाउस, रेकोंग पिओ, फोन २२२८५२
होटल बंजारा, सांगला, फोन ६५१३८२८
रूपिन रीवर गेस्ट हाउस, सांगला फोन २४४२२५, २४४२०५
किन्नर कैलाश कॉटेज, कल्पा फोन २२६१५९
शिवालिका गेस्ट हाउस, कल्पा फोन २२६१५८
पी.डब्ल्यूडी रेस्ट हाउस तथा फोरेस्ट गेस्ट हॉउस उपलब्ल हैं
ट्रेवल एजेन्ट
स्नोलाईन ट्रावेल्स, छोलिंग, फोन २५३१८७
नेशनल ट्रेवलर, रेकोगं पिओ, फोन २२२२४८
नाहन

नाहन का परिचय नाहन की स्थापना सन् १६२१ में महाराजा करम प्रकाश द्वारा की गयी थी। ९३२ मीटर ऊंचाई पर स्थित नाहन सिरमौर जिले का मुख्यालय हैं। इस गौरवपूर्ण एवं नैसर्गिंक कस्बे में घुमावदार गलियॉ।, पुराने महल आदि खूबसूरती लिये हैं। यहाँ का सौ वर्ष पुराना नगर परिषद् कार्यालय भारत के सबसे पुराने कार्यालयों में से एक हैं।


नाहन में लखदाता पीर, लक्ष्मीनारायणद्व जगन्नाथ मंदिर, त्रिलोकीनाथ बाला सुन्दरी मंदिर एवं नजदीक ही छत्री, साकेती फॉसिल पार्क(जहाँ डायनासोर के अवशेष मिले हैं), सिम्बलवाडा वन्यजीव पार्क, जैतक किला(किला १० कि.मी.), लोगढ आदि दर्शनीय हैं।

दर्शनीय पर्यटन स्‍थल
रानीताल बाग
रानीताल बाग में बिखरी हरियाली, फूलों की खुशबू और पंछियों का चहकना इसके आकर्षण दुगुना कर देते हैं। बाग में एक तालाब और भव्य शिव मंदिर भी दर्शनीय हैं।......
चौगानः
चौगान सामाजिक व सांस्कृतिक हलचलों का प्रमुख ऐतिहासिक केन्द्र हैं, जहाँ सिरमौर उत्सव, राष्ट्रीय पर्वों आदि का आयोजन होता हैं।......


होटल
हिल व्यू होटल, फोनः - ०१७०२ - २२८२२
होटल हिमलोक, दादाहू
केशव गेस्ट हाऊस, फोनः- २२४५९
सिरमौर महल गेस्ट हाउस, फोन २४३७७-७८
पूछताछ एवं आरक्षण
बस स्टेण्ड फोन- ०१७०२ - २२२५१२

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हिमाचल प्रदेश:शिमला


 शिमला एक दर्शनीय स्थल  

शिमला समुद्र तल से ६८९० फीट ऊॅंचा, देश का सर्वाधिक खूबसूरत हिल स्टेशन ह, जो कि १२ किमी. लम्बाई में फैला हैं। देश की आजादी के १ वर्ष बाद तक यह ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में अपनी महत्ता सिद्ध करता रहा। न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दूनिया में अपने अनुपम सौंदर्य के कारण यह सैलानियों का प्रिय दर्शनीय स्थल है। ....
माल रोड


माल रोड एक व्यस्त सैरगाह हैं, जहां पुरानी कॉलोनियां, दुकाने और रेस्तरां हैं। मालरोड, के शिखर पर स्केण्डल प्वाईट है, जहां से शिमला का विहंगम दृश्य दर्शक को अभिभूत कर देता हैं। शिमला आने वाला प्रत्येक सैलानी शिमला के हृदयस्थल मालरोड पर अवश्य आता हैं।..



गेयटी थिएटर


गेयटी थिएटर को दुनिया के सबसे पुराने नाटकघरों में शुमार किया जाता हैं। भारतीय नाटककारों के चर्चित नाटकों का मंचन देखकर सैलानी दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं।......






वॉइसराय लॉज

वॉइसराय लॉज शिमला का सबसे सुदर ऐतिहासिक भवन हैं, जो अंग्रेजी हुकूमत की याद ताजा कर देता हैं। यहाँ ऐतिहासिक वस्तुओं का एक अनूठा संग्रहालय भी विद्यमान है।......







जाखू हिल

जाखू हिल शिमला का सर्वोच्च शिखर हैं, जहाँ पर सीधी चढाई के बाद कस्बे और आसपास के स्थानों का विहंगम दृश्य यात्रा को सार्थक कर देता हैं। इसके शिखर पर हनुमानजी का एक प्राचीन मंदिर हैं।......






नाल देहरा

नाल देहरा (२३ किमी., समुद्र तल से ३२०० मीटर ऊंचा) में ९ छिद्रों वाला गोल्फ मैदान हैं, जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य के कारण विश्वविख्यात हैं।......



कुफरी कुफरी (१६ किमी., समुद्र तल से २६२२ मीटर ऊंचा), बर्फ के खेलों, याक की सवारी तथा कस्तूरी मृग प्रजनन केन्द्र के लिए प्रसिद्ध ह। निकट ही महासू पीक से खूबसूरत घाटियों एवं पहाडों के नजारे देखते ही बनते हैं।......
अन्‍य दर्शनीय स्थल
शिमला में राजकीय संग्रहालनय एवं नजदीक ही चाडविक फाल्स (३ किमी.), समर हिल्स (५ किमी.), प्रोस्पेक्ट हिल (५ किमी.), फागू, संजोली, तारादेवी एवं संकटमोचन मंदिर (११ किमी.), तातापानी (५१ किमी., गरम पानी के झरनों हेतु प्रसिद्ध), नारकण्डा (६४ किमी. स्कीईग हेतु प्रसिद्ध), रामपुर (१४० किमी.), सराहन (१८४ किमी.भीमाकाली मंदिर समूह हेत......

चैल

शिमला से ४५ किमी. दूर चैल की स्थापना पटियाला के महाराजा भूपिन्दर सिंह ने की थी, जिन्हें अंग्रेजी कमाण्डर-इन-चीफ की पुत्री से रोमांस करने पर अमपानित कर शिमला से निकाल दिया था। तत्पश्चात् महाराजा ने अपनी अलग ग्रीष्म राजधानी चैल के रूप में बसाई।
समुद्र तल से २२५० मीटर ऊॅंचा एवं देवदार के घने जंगल से घिरा चம....

सोलन

शिमला-चण्डीगढ राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित यह पर्यटन स्थल अपने शुलिनि मेले व ठोडा नृत्य के लिए प्रसिद्ध हैं। शिमला जाते या लौटते समय यहां ठहर कर आस-पास के नजारों का आनंद लिया जा सकता है।

 मन्की पॉईंट

मन्की पॉईंट (४ किमी.), पर्यटकों की पसंदीदा जगह है जहाँ से पहाडों, घाटियों एवं सतलज नदी के दृश्य अत्यन्त खूबसूरत लगते हैं।

यहाँ माल रोड, बाबा बालकनाथ मन्दिर (३ किमी.),, साई बाबा मंदिर, सेण्ट्रल रिसर्च इन्स्टीट्यूट दर्शनीय हैं।

निकट ही सनावर (५ किमी.), स्थित १५० वर्ष पराना लॉरेंस पब्लिक स्कूल, चर्च मशहूर सौर ऊर