Monday, November 30, 2009

हिमाचल प्रदेश:धर्मशाला

धर्मशाला:हिमाचल प्रदेश


धर्मशाला कांगड़ा जिले का जिला मुख्यालय है। यह एक हिल स्टेशन है जो कांगड़ा शहर से लगभग 18 कि.मी. दूर पूर्वोत्तर दिशा में धौलाधार पर्वत श्रंखला के विस्तार में स्थित है। इस हिल स्टेशन में ओक और नुकीली पत्तियों वाले वृक्षों के वन हैं तथा शहर के तीनों ओर हिमाच्छादित पर्वत हैं, जबकि सामने की ओर घाटी फैली हुई है। शायद धर्मशाला ही ऐसा हिल स्टेशन है जहां किसी अन्य हिल रिज़ार्ट की अपेक्षाकृत अधिक बड़ी स्नो-लाइन देखी जा सकती है और यदि सुबह जल्दी यात्रा आरंभ की जाए तो स्नो-प्वाइंट पर पहुंचना संभव है।
1905 में, एक दुखद घटना घटी, जब भूकंप ने इस शहर को पूरी तरह से लील दिया था। पुनर्निर्माण के बाद धर्मशाला एक शांत रिज़ार्ट के रूप में फला-फूला। इसे दो अलग-अलग विशेष भागों में बांटा गया है। लोअर धर्मशाला में सिविल कार्यालय और व्यावसायिक संस्थानों के साथ-साथ न्यायालय तथा कोतवाली बाज़ार हैं तथा अपर धर्मशाला में वे नाम दिखाई देते हैं जो इसके इतिहास से मेल खाते हैं। जैसे मेकलॉड गंज और फॉरबिस गंज। 1960 से, जब धर्मशाला माननीय दलाई लामा का अस्थाई मुख्यालय बना था, इस स्थान को "लिटिल ल्हासा इन इंडिया" के रूप में अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली है।
स्मारक एवं दर्शनीय स्थल
मेकलॉड गंज :
यहां अनेक आवासीय भवन, रेस्टोरेंट, एंटीक और क्यूरियों शॉप्स के साथ-साथ प्रसिद्ध तिब्बती संस्था हैं, जो मेकलॉड गंज का महत्व बढ़ाते हैं। पवित्र गुरु दलाई लामा के वर्तमान निवास स्थान के सामने बुद्ध मंदिर दर्शनीय है। तिब्बती इंसटीट्यूट ऑफ परफार्मिंग आर्ट्स (TIPA) मेकलॉड गंज से 1 कि.मी. की पैदल दूरी पर है जहां तिब्बती नृत्य और थियेटर कला की अनेक परंपराओं को संजोकर रखा गया है। यहां अप्रैल माह के दूसरे शनिवार को 10 दिवसीय लोकनृत्य ओपेरा का आयोजन किया जाता है। मेकलॉड गंज में एक तिब्बती हस्तशिल्प केंद्र भी है और यहां से लगभग 10 मिनट की पैदल दूरी पर रविवार के दिन लगने वाला स्थानीय बाज़ार भी है।
भागसुनाग फॉल्स :
लोअर धर्मशाला से 11 कि.मी. दूर भागसुनाग तक सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है, यहां एक पुराना मंदिर, ताज पानी का झरना और एक रेस्टोरेंट भी है। यहां से 2 कि.मी. आगे खूबसूरत भागसुनाग फॉल्स है, जो देखने लायक है।
सेंट जॉन चर्च :
जंगल में स्थित सेंट जॉन चर्च तक लोअर धर्मशाला से मेकलॉड गंज और फॉरिस्ट गंज के बीच 8 कि.मी. सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। यहां भारत के पूर्व वॉयसराय लार्ड एल्गिन का एक स्मारक है, जिसे 1863 में मृत्यु के बाद यहां दफनाया गया था।
डल झील :
लोअर धर्मशाला से सड़के मार्ग से 11 कि.मी. दूर यह झील पहाड़ियों और फर के ऊंचे पेड़ों से घिरी है। तिब्बती बच्चों के गांव के समीप स्थित धर्मशाला से बाहर जाने तथा ट्रेकिंग के लिए यह आरंभिक स्थान है।
धर्मकोट :
धर्मशाला से 11 कि.मी. दूर यह स्थान दूर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। इस पिकनिक स्पॉट से कांगड़ा घाटी , पोंग डैम लेक और धौलाधार श्रंखला का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।
त्रिउंड (2975 मी.):
धर्मशाला से 20 कि.मी. दूर त्रिउंड 2975 मी. की ऊंचाई पर सदैव बर्फ से ढकी धौलाधार पर्वतों की तलहटी में स्थित है। त्रिउंड से 5 कि.मी. दूर क्षेत्र से स्नो-लाइन आरंभ होती है। यह एक प्रसिद्ध पिकनिक और ट्रेकिंग स्पॉट है। यहां वन विभाग के रेस्ट-हाउस में ठहरा जा सकता है, किंतु पानी लाने के लिए यहां से 2 कि.मी. दूर जाना पड़ता है। धर्मशाला से इस स्थान तक रोप-वे का निर्माण किया जा रहा है।
युद्ध स्मारक :
सुंदर दृश्यावली से घिरा यह स्मारक धर्मशाला के प्रवेश स्थल के समीप है। अपनी मातृभूमि की रक्षा में बहादुरी से लड़े वीरों की स्मृति में यह स्मारक बनाया गया है।
कुणाल पाथरी :
कोतवाली बाज़ार से 3 कि.मी. की समतल सड़क यात्रा के बाद चट्टान पर बने स्थानीय देवी के इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
कारेड़ी :
कोतवाली बाज़ार से 22 कि.मी. दूर इस रेस्ट हाउस में रात्रि-प्रवास किया जा सकता है। रेस्ट हाउस से 13 कि.मी. दूर स्थित कारेड़ी झील दर्शनीय है। यहां दुर्वासा और काली के मंदिर हैं।
ज्वालामुखी मंदिर :
ज्वालामुखी का प्रसिद्ध मंदिर कांगड़ा से 30 कि.मी. और धर्मशाला से 56 कि.मी. दूर स्थित है। "प्रकाश की देवी" को समर्पित यह उत्तर भारत के प्रसिद्ध हिंदु मंदिरों में सेे एक है। यहां किसी प्रकार की कोई मूर्ति नहीं है, केवल आग की लपट को देवी का रूप माना जाता है। श्रद्धालुभक्त प्राकृतिक रूप से पवित्र चट्टान से प्रकट होने वाली जलती और चमकीली नीली लौ की पूजा करते हैं। मंदिर का सोने का छतर सम्राट अकबर की भेंट है। अप्रैल माह के आरंभ में और अक्तूबर माह के मध्य नवरात्रों में यहा दो महत्वपूर्ण मेलों का आयोजन होता है। यात्रियों के ठहरने के लिए यहां आधुनिक सुविधाओं वाले होटल, धर्मशालाएं, विश्राम गृह और हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम के होटल हैं। (कृपया मंदिर की विशेष रूप से बनी वेबसाइट देखें)।
डेहरा गोपीपुर :
यह ब्यास नदी के किनारे स्थित है। आसपास के विभिन्न क्षेत्रों जैसे पोंग डैम, पाटन, कुर्न और नादौन के लिए डेहरा का एक बेस के रूप में उपयोग संभव है। यहां से प्रसिद्ध चिन्तपूर्णी मंदिर के दशर्नार्थ भी जा सकते हैं।
त्रिलोकपुर :
यह स्थान धर्मशाला से 41 कि.मी. दूर है और सड़क मार्ग से त्रिलोकपुर के पवित्र गुफा मंदिर पहुंचा जा सकता है। यहां भगवान शिव को समर्पित स्टेलेटिट और स्टेलेगेमिट हैं। गुफा के ऊपर एक महल और बारादरी के अवशेष हैं। यह महल सिख शासन के दौरान कांगड़ा पहाड़ी के गवर्नर लहना सिंह मजीठा का है।
नूरपुर :
धर्मशाला से 66 कि.मी. दूर स्थित नूरपुर अपने प्राचीन किले और ब्रजराज मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। नूरपुर का नाम 1762 में उस समय पड़ा जब मुगल सम्राट जहांगीर ने इसे अपनी पत्नी नूरजहां का नाम दिया। नूरपुरी शालें अच्छी होती हैं। यात्रियों के ठहरने के लिए यहां लोक निर्माण विभाग का रेस्ट हाउस है।
मसरुर :
अपने मोनोलिथिक रॉक मंदिरों के लिए प्रसिद्ध मसरुर कांगड़ा के 15 कि.मी. दक्षिण में स्थित है। यहां चट्टानों को काटकर बनाए गए इंडो-आर्यन शैली के शानदार नक्काशी वाले 15 मंदिर हैं। आंशिक रूप से खंडहर हो चुके ये मंदिर शिल्पकला से निर्मित अलंकरणों से सुसज्जित हैं। इन्हें इस तरह बनाया गया है कि ये महाराष्ट्र स्थित एलौरा के महान कैलाश मंदिर की झलक देते हैं। मुख्य मंदिर भगवान राम, लक्ष्मण और सीता को समर्पित है।

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