Thursday, December 17, 2009

यात्रा पर जाने से पहले क्या क्या बातें ध्यान में रखें

यात्रा पर जाने से पहले क्या क्या बातें ध्यान में रखें

रोजमर्रा की भाग दौड़,तनाव भरी शहरी जिन्दगी,घिसेपिटे ठर्रे पर जिन्दगी बिताते हुए  कई बार हमारा  मन  करता है की हम किसी ऐसी जगह पर जाये जहाँ पर कुछ सकुन मिल सके पर पर्यटन
पर जाने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखें
१.यात्रा की योजना अचानक नही बनाये वर्ना तैयारी पूरी नहीं हो पायेगी|
२.अगर रेल मार्ग से जा रहे है तो रीजर्वेसन जरूर कराएँ
३.यात्रा पर ले जाने वाली चीजों की एक सूची बनायें
४.अगर कोई बीमारी है तो उसकी दवाई जरूर साथ ले जाये क्योकि जरूरत  पड़ने पर हर दवाई हर जगह उपलब्ध हो ये जरूरी नहीं है| अगर गर्मियों में गर्म जगहों पर जाना आवश्यक हो तो ग्लूकोन-डी अवश्य साथ ले और खूब पानी तथा निम्बू सरबत पीयें| 
५.सामान कम से कम रखे ताकी ले जाने में कोई दिक्कत न हो
६.होटल का आरक्षण जरूर कराएँ|किसी दलाल के जरिये होटल या टेक्सी  बुक न करवाएं क्योकि ये दलाल कमीशन  के लालच में महंगा और निम्न स्तर का कमरा दिला देते है|  
७.यात्रा के स्थान की जरूरी जानकारी अवश्य इक्कठा कर ले
८.ऐसे  स्थान का प्लान ना बनाये जहाँ का वातावरण उस समय आपके अनुकूल न हो
८.एक साथ बहूत सारे स्थान न चूने यात्रा का मकशद शुकून होना चाहिए ना की  भाग दौड़
९.व्यर्थ की शौपिंग ना करे|सिनेमा देखने,क्लब,जिम आदि में समय बर्बाद न करे|ये काम आप घर पर भी कर सकते है| 
१०.यात्रा के लिए भरपूर धन साथ रखे,क्रेडिट कार्ड साथ रखे तथा ज्वेलरी कम से कम ले जाये क्योकि अधिक गहने ले जाने पर लूटपाट चोरी आदि का खतरा रहता है| 
११. डिजिटल केमरा,अगर हेंडीकेम, साथ ले ले
शेष शीघ्र                                                                                  

                                                                                                                         मंजूषा

Wednesday, December 16, 2009

पाँच देवी दर्शन:वज्रेश्वरी देवी,ज्वालामुखी देवी,चिंतपूर्णी माता

वज्रेश्वरी देवी




वज्रेश्वरी देवी का यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के मुख्य नगर काँगड़ा में स्थित है जन साधारण में यह देवी नगकोट या काँगड़ावाली देवी के नाम से विख्यात है यवनों के इतने आक्रमणों के पश्चात यह मंदिर माता वज्रेश्वरी देवी के प्रताप से अक्षत रहा यहाँ पर माता के वक्ष स्थल गिरे है माता की यहाँ पिंडी रूप में पूजा होती है पठानकोट से आनेवाले यात्री लगभग ३ घंटे की यात्रा करके काँगड़ा पहुच सकते है काँगड़ा नगर हिमाचल प्रदेश के सभी नगरो से बस मार्ग द्वारा जुड़ाहै रेल मार्ग से आनेवाले यात्री पठानकोट से छोटी गाड़ी द्वारा पठानकोट-जोगिन्दर रूट पर काँगड़ा मंदिर स्टेशन पर उतरते है मंदिर यहाँ से नजदीक है काँगड़ा नगर ज्वालामुखी से लगभग ३० किलोमीटर दुरी पर पड़ता है.मंदिर के द्वार तक पहुँचने के लिए सीढियाँ चढ़ कर जाना पड़ता है मंदिर के दोनों और प्रसाद और पूजा सामग्री की कई दुकाने है

ज्वालामुखी देवी



ज्वालामुखी देवी का यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला काँगड़ा में स्थित है
पंजाब राज्य के जिला होशियार पुर से गोपीपुरा डेरा होते हुए डेरा से लगभग २० किमी दुरी पर ज्वाला देवी का मंदिर हैकाँगड़ा से यात्री बस द्वारा २ घंटे में ज्वालाजी पहुँच सकते है दुर्गा सप्तसती के अनुसार यहाँ माता की महा जिव्हां गिरी थी इसे ५१ शक्तिपीठों में सर्वोपरि माना गया है यहाँ माता के दर्शन ज्योति के रूप में होते है यहाँ पर ६ स्थानों पर पर्वत की चट्टानों से निरंतर ज्योति बिना किसी ईधन के प्रज्वल्लित होत्ती रहती है



चिंतपूर्णी माता




चिंतपूर्णी माता अर्थात चिंता को पूर्ण करनेवाली देवी चिंतपूर्णी देवी का यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला ऊनामें स्थित है पंजाब के होशियारपुर से कुछ दुरी पर भरवाई बस अड्डे से लगभग ३ किमी की दूरी पर चिंतपूर्णी देवी का मंदिर है माता के यहाँ पिंडी रूप में पूजा होती है यहाँ पर सती के चरण गिरे थे कहते है की चिंतपूर्णी देवी का एक बार दर्शन मात्र करने से समस्त चिन्ताओ से मुक्ति मिलती है इसे छिन्नमस्तिका देवी भी कहते है श्री मार्कंडेय पुराण के अनुसार जब माँ चंडी ने राक्षसों का संहार करके विजय प्राप्त की तो माता की सहायक योगिनियाँ अजया और विजया की रुधिर पिपासा को शांत करने के लिए अपना मस्तक काटकर, अपने रक्त से उनकी प्यास बुझाई इसलिए माता का नाम छिन्नमस्तिका देवी पड़ गया प्राचीन ग्रंथो के अनुसार छिन्नमस्तिका देवी के निवास के लिए मुख्य लक्षण यह माना गया है की वह स्थान चारों और से शिव मंदिरों
से घिरा रहेगा और यह लक्षण चिंतपूर्णी में शत प्रतिशत सत्य प्रतीत होता है क्योकि चिंतपूर्णी मंदिर के पूर्व में कालेश्वर महादेव,पश्चिम में नर्हारा महादेव,उत्तर में मुच्कुंड महादेव और दक्षिण में शिववाड़ी है मंदिर के प्रांगन में पेड़ के तने पर नाल बाँधकर अपनी मनोकामना देवी से मांगते है















Saturday, December 12, 2009

अल्मोड़ा

अल्मोड़ा

अल्मोड़ा पहाड़ों की गोद में बसा एक खुबसूरत पर्यटन स्थल है|इसे बसाने का श्रेय अंग्रेजों को जाता है दूर दूर तक फैले बर्फ के पहाड़,घास के मैदान,झरने,फल,फूलों से लदे पेड़ आदि एक मनोहारी द्रश्य प्रस्तुत करते है|चीड,देवदार के घने जंगलों से आती ठंडी ठंडी हवा पर्यटकों के तन और मन दोनों में ताजगी भर देती है|यहाँ पर सेव,स्ट्राबेरी,आड़ू तथा अन्य जंगली फल,फूल पाए जातें है| यहाँ पर मकान पर्वतों की ढलानों पर बनाये जाते है जीसमे चीड़,देवदार की लकड़ियों का उपयोग किया जाता है|यहाँ पर कुमाऊनी   और गढ़वाली भाषाएँ बोली जाती है तथा यहाँ के लोग अत्यंत सीधे और मिलनसार होतें  है| ग्रीष्मकाल में यहाँ पर बुरांश  के फूल खिलते है जिस से यहाँ की खूबसूरती  और भी बढ़ जाती है| पर्यटक यहाँ की स्थानीय मिठाई सिंगोडी और बालमिठाई जरूर खरीदें |यहाँ पर पैदल घुमतें हुए  यहाँ की संस्कृति यहाँ के लोग,उनके आवास आदि का नजारा  देखा जा सकता है|
 नन्दा देवी मन्दिर :
गढ़वाल कुमाऊँ की एक मात्र ईष्ट देवी भगवती नन्दा पार्वती है। नन्दा अष्टमी के दिन सम्पूर्मम पर्वतीय अंचल में नन्दा की विशेष पूजा होती है। नन्दा देवी की मूर्ती केले के पत्तों और केले के तनों से बनाई जाती है। नन्दा की सवारी भी निकाली जाती है। नन्दा अष्टमी भाद्रपद अर्थात् सितम्बर के महीने में आती है। यहाँ पर इस दिन बहुत बड़ा मेला लगता है। इस दिन दर्शनार्थी आकर पूजा करते हैं। मेले में झोड़ा, चाँचरी और छपेली आदि नृत्यों का भी सुन्दर आयोजन होता है। कुमाऊँ के कई अंचलों की लोकनृत्य की पार्टियाँ यहाँ आकर अपना-अपना कौशल दिखाती हैं, पर्यटक, पदारोही, सैलानी और साहित्य एवं कला प्रेमी इन्ही दिनों अधिकतर कुमाऊँ की संस्कृति तता वहाँ के जन-जीवन की वास्तविक जानकारी करने हेतु अल्मोड़ा पहुँचते हैं। अल्मोड़ा की नन्दा देवी के दर्शन करना अत्यन्त लाभकारी माना जाता है। अल्मोड़ा में नन्दा देवी के अलावा त्रिपुर सुन्दरी मन्दिर, रघुनाथ मन्दिर, महावीर मन्दिर, मुरली मनोहर मन्दिर, भैरवनाथ मन्दिर, बद्रीनाथ मन्दिर, रत्नेश्वर मन्दिर और उलका देवी मन्दिर प्रसिद्ध हैं। जामा मस्जिद, मैथोडिस्ट चर्च और अंगलीकन चचें प्रसिद्ध है।


 कसार देवीमंदिर :
यह मुख्य नगर से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर से हिमालय की ऊँची-ऊँची पर्वत श्रेणियों के दर्शन होते हैं। कसार देवी का मंदिर भी दुर्गा का ही मंदिर है। कहते हैं कि इस मंदिर की स्थापना ईसा के दो वर्ष पहले हो चुकी थी। इस मंदिर का धार्मिक महत्व बहुत अधिक आंका जाता है।

चित्तई मंदिर :
कुमाऊँ के प्रसिद्ध लोक - देवता 'गोल्ल' का यह मंदिर नन्दा देवी की तरह प्रसिद्ध है। इस मंदिर का महत्व सबसे अधिक बताया जाता है। अल्मोड़ा से यह मंदिर ६ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हिमालय की कई दर्शनीय चोटियों के दर्शन यहाँ से होते हैं।


कालीमठ :
यह अल्मोड़ा से ५ कि.मी. की दूरी पर स्थित है। एक ओर हिमालय का रमणीय दृश्य दिखाई देता है और दूसरी ओर से अल्मोड़ा शहर की आकर्षक छवि मन को मोह लेती है। प्रकृतिप्रेमी, कला प्रेमी और पर्यटक इस स्थल पर घण्टों बैठकर प्रकृति का आनन्द लेते रहते हैं। गोरखों के समय राजपंडित ने मंत्र बल से लोहे की शलाकाओं को भ कर दिया था। लोहभ के पहाड़ी के रुप में इसे देखा जा सकता है।


 सिमतोला :
यह अल्मोड़ा नगर से ३ कि.मी. की दूरी पर 'सिमतोला' का 'पिकनिक स्थल' सैलानियों का स्वर्ग है। प्रकृति के अनोखे दृश्यों को देखने के लिए हजारों पर्यटक इस स्थल पर आते-जाते रहते हैं।

 मोहनजोशी पार्क :
इस जगह पर एक ताल का निर्माण किया गया है। मानव निर्मित 'v' आकार के इस ताल की सुन्दरता इतनी आकर्षक है कि सैलानी घंटों इसी के पास बैठकर प्रकृति की अद्भुत छवि का आनन्द लेते रहते हैं। यहाँ का मोहक और शान्त वातावरण पर्यटकों के लिए काफी सुखद अनुभव रहता है।

 मटेला:
मटेला का सुखद वातावरण सैलानियों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र है। यहाँ के बाग अत्यन्त सुन्दर हैं। 'पिकनिक' के लिए कई पर्यटक यहाँ अपने-अपने दलों के साथ आते हैं। नगर से १० कि.मी. की दूरी पर एक प्रयोगात्मक फार्म भी है।


राजकीय संग्रहालय :
अल्मोड़ा में राजकीय संग्रहालय और कला-भवन भी है। कला प्रेमियों तथा इतिहास एवं पुरातत्व के जिज्ञासुओं के लिए यहाँ पर्याप्त सामाग्री है।


 ब्राइट एण्ड कार्नर :
यह अल्मोड़ा के बस स्टेशन से केवल २ कि.मी. कब हूरी पर एक अद्भुत स्थल है। इस स्थान से उगते हुए और डूबते हुए सूर्य का दृश्य देखने हजारों मील से प्रकृति प्रेमी आते रहते हैं। इंगलैण्ड में 'ब्राइट बीच' है। उस 'बीच' से भी डूबते और उगते सूरज का दृश्य चमत्कारी प्रभाव डालने वाला होता है। उसी 'बीच' के नाम पर अल्मोड़ा के इस 'कोने' का नाम रखा गया है। अल्मोड़ा सुन्दर आकर्षक और अद्भुत है। इसीलिए नृत्य-सम्राट उदयशंकर को यह स्थान इतना भाया था कि उन्होंने अपनी 'नृत्यशाला' यहीं बनायी थी। उनके कई विश्वविख्यात नृत्यकार शिशुओं ने अल्मोड़ा की रमणीय धरती में ही नृत्य कला की प्रथम शिक्षा ग्रहण की थी। उदयशंकर की तरह विश्वकवि रविन्द्रनाथ टैगोर को भी अल्मोड़ा पसन्द था। वे यहाँ कई दिन तक रहे। विश्व में वेदान्त का शंखनाद करने वाले स्वामी विवेकानन्द अल्मोड़ा में आकर अत्याधिक प्रसन्न हुए थे। उन्हें इस स्थान में आत्मिक शान्ति मिली थी।
कटारमल
कटारमल का सूर्य मन्दिर अपनी बनावट के लिए विख्यात है। महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने इस मन्दिर की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उनका मानना है कि यहाँ पर समस्त हिमालय के देवतागण एकत्र होकर पूजा अर्चना करते रहै हैं। उन्होंने यहाँ की मूर्तियों की कला की प्रशंसा की है। कटारमल के मन्दिर में सूर्य पद्मासन लगाकर बैठे हुए हैं। यह मूर्ति एक मीटर से अधिक लम्बी और पौन मीटर चौड़ी भूरे रंग के पत्थर में बनाई गई है। यह मूर्ती बारहवीं शताब्दी की बतायी जाती है। कोर्णाक के सूर्य मन्दिर के बाद कटारमल का यह सूर्य मन्दिर दर्शनीय है। कोर्णाक के सूर्य मन्दिर के बाहर जो झलक है, वह कटारमल मन्दिर में आंशिक रुप में दिखाई देती है। कटारमल के सूर्य मन्दिर तक पहुँचने के लिए अल्मोड़ा से रानीखेत मोटरमार्ग के रास्ते से जाना होता है। अल्मोड़ा से १४ कि.मी. जाने के बाद ३ कि.मी. पैदल चलना पड़ता है। मन्दिर १५५४ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। अल्मोड़ा से कटारमल मंदिर १७ कि.मी. की निकलकर जाता है। रानीखेत से सीतलाखेत २६ कि.मी. दूर है। १८२९ मीटर की ऊँचाई पर बसा हुआ है। कुमाऊँ में खुले मैदान के लिए यह स्थान प्रसिद्ध है। कुमाऊँ का यह ऐसा खिला हुआ रमणीय स्थान है यहाँ देश के कोने-कोने से हजारों बालचर तथा एन.सी.सी. के कैडेट अपने-अपने शिविर लगाकर प्रशिक्षण लेते हैं। यहाँ ग्रीष्म ॠतु में रौनक रहती है। प्रशिक्षण के लिए यहाँ पर्याप्त व्यवस्था है। दूर-दूर तक कैडेट अपना कार्यक्रम करते हुए, यहाँ आन्नद मनाते हैं।
'सीतला देवी' का यहाँ प्राचीन मंदिर है। इस देवी की इस सम्पूर्ण क्षेत्र में बहुत मान्यता है। इसीलिए 'सीतलादेवी' के नाम से ही इस स्थान का नाम 'सीतलाखेत' पड़ा है। यहाँ पर्यटकों के लिए पर्याप्त व्यवस्था है। कुमाऊँ मण्डल विकास निगम ने यहाँ पर चार शैय्याओं वाला एक आवासगृह बनाया है। प्रकृति-प्रेमियो के लिए 'सीतलाखेत' का सम्पूर्ण क्षेत्र आकर्षण से बरा हुआ है। सीतलाखेत' का मुख्य आकर्षम यह है कि यहाँ से हिमालय के भव्य दर्शन होते हैं। छुट्टियों को शान्तिपूर्वक बिताने के लिए यह अत्युत्तम स्थान है।
उपत :
रानीखेत-अल्मोड़ा मोटर-मार्ग के पाँचवें किलोमीटर पर उपत नामक रमणीय स्थल है। कुमाऊँ की रमणीयता इस स्थल पर और भी आकर्षक हो जाती है। उपत में नौ कोनों वाला विशाल गोल्फ का मैदान है। गोल्फ के शौकीन यहाँ गर्मियों में डेरा डाले रहते हैं। रानीखेत समीप होने की वजह से सैकड़ों प्रकृति-प्रेमी और पर्वतारोही भी इस क्षेत्र में भ्रमणार्थ आते रहते हैं। प्रकृति का स्वच्छन्द रुप उपत में छलाक हुआ दृष्टिगोचर होता है। रानीखेत से प्रतिदिन सैलानी यहाँ आते रहते हैं।
 कालिका :
उपत में लगभग एक-डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर कालिक नामक स्थल भी अपनी प्राकृतिक छटा के लिए विख्यात है। कालिका में 'कालीदेवी' का मंदिर है। यहाँ काली के भक्त निरन्तर आते रहते हैं। 'कालिका' में वन विभाग की फूलों की एक नर्सरी है। इस नर्सरी के कारण अनेक वनस्पति शास्र के शोधार्थी और प्रकृति-प्रेमी यहाँ जमघट लगाए रहते हैं।
 मजखाली :
कालिक से केवल ७ कि.मी. दूर पर रानीखेत-अल्मोड़ा-मार्ग पर मजखाली का अत्यन्त सौन्दर्यशाली स्थल स्थित है। मजखाली की धरती रमणीय है। यहाँ से हिमालय का मनोहारी हिम दृश्य देखने सैकड़ों प्रकृति-प्रेमी आते रहते हैं। मजखाली से कौसानी का मार्ग सोमेश्वर होकर जाता है। रानीखेत से कौसानी जाने वाले पर्यटक मजखाली होकर ही जाना पसन्द करते हैं।
 सुविधाएँ
अल्मोड़ा बाज़ार, पर्यटकों, प्रकृति-प्रेमियोम, पर्वतरोहियों और पदारोहियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए अल्मोड़ा आज का सर्वोत्तम नगर है। यहाँ रहने के लिए अच्छे होटल हैं।अलका होटल, अशोक होटल, अम्बैसेडर होटल, ग्रैंड होटल, त्रिशुल होटल, रंजना होटल, मानसरोवर, न्यू हिमालय होटल, नीलकंठ होटल, टूरिस्ट कॉटेज, रैन बसेरा होटल, प्रशान्त होटल और सेवॉय होटल आदि कई ऐसे होटल हैं जहाँ रहने की सुन्दर व्यवस्था है।इसके अतिरिक्त होलीडे होम, सर्किट हाऊस, सार्वजनिक निर्माण विभाग का विश्राम-गृह, वन विभाग का विश्राम-गृह और जुला परिषद का विश्राम-गृह भी सैलानियों के लिए उपलब्ध किये जा सकते हैं। पर्यटकों के मनोरंजनार्थ यहाँ रीगल और जगन्नाथ सिनेमाघर भी हैं।यहाँ के ऊनी वस्र प्रसिद्ध है। लाला बाजार और चौक बाजार इसके केन्द्र हैं।
अल्मोड़ा जाने के लिए काठगोदाम अंतिम रेलवे स्टेसन है। काठगोदाम से अल्मोड़ा (खैरना होकर) केवल ९० कि. मी. दूर है। अल्मोड़ा से नैनीताल ६७ कि.मी., पिथौरागढ़ १०९ कि.मी. और दिल्ली ३७८ कि.मी. की दूरी पर (मोटर मार्ग से) स्थित है। इन स्थानों के लिए नियमित बस-सेवायें उपलब्ध है।

Saturday, December 5, 2009

सालासर खाटूश्यामजी यात्रा

सालासर ,खाटूश्यामजी यात्रा

सीकर सुजानगढ़ मार्ग पर एक गाँव है सालासर जो हनुमानजी का पीठ माना जाता है यहाँ पर हनुमानजी का दाढ़ी मूंछ युक्त विग्रह है जो स्वर्ण सिंहांसन पर विराजमान है मंदिर के बिच में जाल का एक पेड़ है जिस पर भक्त गन अपनी मनोकामना पूर्ण करने हेतु लाल धागे और नारियल बाँधते  है मंदिर में अखंड ज्योति जलती रहती है मंदिर के संस्थापक बाबा मोहनदास की धुनी की भभूती को लोग दुःख निवारण के लिए लेते है पास में ही अंजनी माता का मंदिर है यहाँ पर ठहरने के लिए अनेक होटल  और धर्मशालाये है चैत्र,वैसाख,भाद्रपत,अश्विन मास में यहाँ हनुमानजी का मेला लगता है यहाँ पर चूरमा या बूंदी के लड्डू की सवामनी भी कर सकते है मंदिर में ही सारा प्रबंध   हो जाता है यह राजस्थान का एक जाग्रत तीर्थ स्थान है सालासर से लगभग ५०किमी  की दूरी पर सुजानगढ़ में तिरुपति बालाजी का एक भव्य मंदिर है







खाटू श्यामजी

सीकर से ३५ मिले की दुरी पर खाटू ग्राम में श्यामजी का लोक प्रसिद मंदिर है| जनश्रुति के अनुसार महाभारत के वीर बर्बरीक के मस्तक दान देने पर श्री कृष्ण द्वारा उस शीश को कलयुग में श्याम रूप में पुजिद होने का वरदान मेला था खाटू के  किसी  व्यक्ति को श्री कृष्ण ने स्वप्न में दर्शन देकर आदेश दिया की गाँव की  बावड़ी में पड़े शीश
को निकालकर  कर प्रतिष्ठापित करो. गाँव में मंडप बनाकर इस शीश को प्रतिष्ठापित कर दिया गया. बाद में जोधपुर नरेश के  अधीन अभय  सिंह जागीरदार ने वर्त्तमान मंदिर बनाकर पुन प्रतिष्ठा
की तथा पूजा और उपासना के लिए अपनी जागीर के कई गाँव भेंट किए. शिलालेख के अनुसार फाल्गुन सुदी ७ विक्रमी १७७१ मैं मंदिर की नीव रखी गयी थी . श्याम जी की शीश पूजा की जाती है . मुखाकृति दाढ़ी मूंछ सहित है  शेष शरीर पुष्प मालाओं से बनाया गया है . आज जहाँ खाटू है तब यहाँ खट्वांग राजा की राजधानी थी जहाँ एक शिवालय तथा रूपवती  नदी  थी . बाद मैं महाभारत काल मैं बर्बरीक का मस्तक, जो एक टीले से कुरुषेत्र का  सम्पूर्ण युद्ध देख रहा था , लुप्त होगया . श्रीकृष्ण के वरदान  के कारण  उसकी श्याम रूप में पूजा  होती है खाटू के श्यामजी लोगो की श्रधा और भक्ति के केंद्र है हर वर्ष फाल्गुन एकादशी और द्वादशी को यहाँ विशाल मेला लगता है यहाँ   पर ठहरने के लिए अनेक होटल और धर्मशालाये है प्रसाद व अन्य पूजा सामग्री की कई दुकाने मंदिर के पास है यहाँ पर भी भक्त गण यहाँ पर चूरमा या बूंदी के लड्डू की सवामनी भी कर सकते है

Thursday, December 3, 2009

देहरादून शहर

देहरादून शहर

हिमालय की पहाड़ियों पर बसा देहरादून भारत के प्राचीनतम शहरों में से एक है। इसे द्रोणाचार्य के शिक्षालय के रूप में भी जाना जाता है। यह शहर गढ़वाल के शासकों का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है, जिस पर ब्रिट्शों ने कब्जा कर लिया था। यहां तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग, सर्वे ऑफ इंडिया, आई.आई.पी. आदि जैसे कई राष्ट्रीय संस्थान स्थित हैं। देहरादून में वन अनुसंधान संस्थान, भारतीय राष्ट्रीय मिलिटरी कालेज और इंडियन मिलिटरी एकेडमी जैसे कई शिक्षण संस्थान हैं। यह एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। अपनी सुंदर दृश्यवाली के कारण देहरादून पर्यटकों, तीर्थयात्रियों और विभिन्न क्षेत्र के उत्साही व्यक्तियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। स्पेशल बासमती चावल, चाय और लीची के बाग इसकी प्रसिद्धि को और बढ़ाते हैं तथा शहर को सुंदरता प्रदान करते हैं।
 दर्शनीय स्थल


तपकेश्वर मंदिर :
यह मंदिर सिटी बस स्टेंड से 5.5 कि.मी. की दूरी पर गढ़ी कैंट क्षेत्र में एक छोटी नदी के किनारे बना है। सड़क मार्ग द्वारा यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां एक गुफा में स्थित शिवलिंग पर एक चट्टान से पानी की बूंदे टपकती रहती हैं। शिवरात्रि के पर्व पर आयोजित मेले में लोग बड़ी संख्या में यहां एकत्र होते हैं और यहां स्थित शिव मूर्ति पर श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं।


मालसी डियर पार्क :
देहरादून से 10 कि.मी. की दूरी पर मसूरी के रास्ते में यह एक सुंदर पर्यटन स्थल है जो शिवालिक श्रंखला की तलहटी में स्थित है। मालसी डियर पार्क एक छोटा सा चिड़ियाघर है जहां बच्चों के लिए प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा एक पार्क भी विकसित किया गया है। सुंदर वातावरण के कारण यहां ताज़गी का अहसास होता है जिससे यह एक आदर्श दर्शनीय-स्थल और पिकनिक-स्पॉट बन चुका है। सहस्त्रधारा सल्फर मिश्रित पानी का झरना है, जिसका औषधिय महत्व भी है। बाल्डी नदी और यहां की गुफाएं एक रोमांचक दृश्य उत्पन्न करती हैं।  बस स्टेंड से 14 कि.मी. की दूर, यहां नियमित बस सेवा और टैक्सियों द्वारा पहुंचा जा सकता है। यह  पिकनिक के लिए  एक अच्छा स्थान है।

कलंगा स्मारक :
देहरादून-सहस्त्रधारा मार्ग पर स्थित यह स्मारक ब्रिटिशों और गोरखाओं के बीच 180 वर्ष पहले हुए युद्ध में बहादुरी की गाथाएं याद दिलाता है। रिसपाना नदी के किनारे पहाड़ी पर 1000 फुट की ऊंचाई पर बना यह स्मारक गढ़वाली शासकों के इतिहास को दर्शाता है।
लक्ष्मण सिद्ध :
ऋषिकेश की ओर देहरादून से 12 कि.मी. दूर यह एक प्रसिद्ध मंदिर है। किवदंती है कि एक साधु ने यहां समाधि ली थी। मंदिर तक सुलभता से पहुंच होने के कारण विशेषकर रविवार को यहां बड़ी संख्या में दर्शनार्थी आते हैं।

चन्द्रबदनी  :
देहरादून-दिल्ली मार्ग पर देहरादून से 7 कि.मी. दूर यह मंदिर चन्द्रबदनी(गौतम कुंड) के लिए प्रसिद्ध है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस स्थान पर महर्षि गौतम अपनी पत्नी और पुत्री अंजनी के साथ निवास करते थे. इस कारण मंदिर में इनकी पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि स्वर्ग-पुत्री गंगा इसी स्थान पर अवतरित हुई, जो अब गौतम कुंड के नाम से प्रसिद्ध है। प्रत्येक वर्ष श्रद्धालु इस पवित्र कुंड में डुबकी लगाते हैं। मुख्य सड़क से 2 कि.मी. दूर, चारो और से शिवालिक पहाड़ियों के मध्य में यह एक सुंदर पर्यटन स्थल है।

साई दरबार :
राजपुर रोड पर शहर से 8 कि.मी. की दूरी पर घंटाघर के समीप साई दरबार मंदिर है। इसका बहुत अधिक सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है तथा देश-विदेश से दर्शनार्थी यहं आते हैं। साई दरबार के समीप राजपुर रोड पर ही भगवान बुद्ध का बहुत विशाल और भव्य तिब्बती मंदिर है।

रॉबर्स केव (गुच्छुपानी) :

पिकनिक के लिए एक आदर्श स्थान रॉबर्स केव सिटी बस स्टेंड से केवल 8 कि.मी. दूर है। हरिद्वार-ऋषिकेश मार्ग पर लच्छीवाला-डोईवाला से 3 कि.मी. और देहरादून से 22 कि.मी. दूर है। सुंदर दृश्यावली वाला यह स्थान पिकनिक-स्पॉट है। यहां हरे-भरे स्थान पर फॉरेस्ट रेस्ट हाउस में पर्यटकों के लिए ठहरने की व्यवस्था है।

वन अनुसंधान संस्थान :
घंटा से 7 कि.मी. दूर देहरादून-चकराता मोटर-योग्य मार्ग पर स्थित यह संस्थान भारत में सबसे बड़ा फॉरेस्ट-बेस प्रशिक्षण संस्थान है। जो  तथा इसमें एक बॉटनिकल म्यूजियम भी है। एफआरआई (देहरादून) से 3 कि.मी. आगे देहरादून-तकराता मार्ग पर 8 कि.मी. की दूरी पर स्थित इंडियन मिलिटरी एकेडमी सेना अधिकारियों के प्रशिक्षण का एक प्रमुख संस्थान है।
एकेडमी में स्थित म्यूजियम, पुस्तकालय, युद्ध स्मारक, गोला-बारुद शूटिंग प्रदर्शन-कक्ष और फ्रिमा गोल्फ कोर्स (18 होल्स) दर्शनीय स्थल हैं।

तपोवन :
देहरादून-राजपुर रोड पर सिटी बस स्टेंड से लगभग 5 कि.मी. दूर स्थित यह स्थान सुंदर दृश्यों से घिरा है। कहावत है कि गुरु द्रोणाचार्य ने इस क्षेत्र में तपस्या की थी।

संतौला देवी मंदिर :
देहरादून से लगभग 15 कि.मी. दूर स्थित प्रसिद्ध संतौला देवी मंदिर पहुंचने के लिए बस द्वारा जैतांवाला तक जाकर वहां से पंजाबीवाला तक 2 कि.मी. जीप या किसी हल्के वाहन द्वारा तथा पंजाबीवाला के बाद 2 कि.मी. तक पैदल रास्ते से मंदिर पहुंचा जा सकता है। यह मंदिर लोगों के विश्वास का प्रतीक है और इसका बहुत सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है।
भागीरथ रिज़ार्ट :
सड़क मार्ग द्वारा चकराता से 18 कि.मी. दूर सेलाकी, देहरादून स्थित भागीरथी रिज़ार्ट से हिमालय की पर्वत श्रेणियों का रोमांचक दृश्य दिखाई देता है। रिजार्ट में बना शांत स्विमिंग पूल, वाटर-स्लाइडें और फव्वारा यात्रियों को आकर्षित करते हैं। पर्वत श्रेणियों की पृष्ठभूमि में बना यह रिज़ार्ट एक आदर्श पर्यटन स्थल है।

वाडिया इंस्टीट्यूट :

जनरल माधवसिंह रोड पर घंटाघर से 5 कि.मी. दूर पहाड़ी के ऊपर स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट उत्तराखंड ग्लेशियर का एक अनोखा म्यूजियम है।

Tuesday, December 1, 2009

नैनीताल

नैनीताल


अपने आसपास झीलों के समूह (भीम ताल, सात ताल, नौकुचिया ताल और वस्तुत:, नैनी) के कारण झीलों के शहर नैनीताल को एक उत्कृष्ट नगीना कहा जाता है। अन्य रूप में भारत का पहला राष्ट्रीय पार्क-कॉर्बेट, टिम्बर व्यापार के लिए प्रसिद्ध और कुमाऊं क्षेत्र का संपर्क रेलवे स्टेशन काठगोदाम, प्रमुख फल-मार्किट भोवाली और उपजाऊ गेहूं क्षेत्र तथा जिम कार्बेट का घर कालाडूंगी इस जिले की अन्य पहचान हैं।
भगवान शिव की पत्नी देवी सती की बाईं आंख से निकली नैनी झील का पानी पवित्र माना जाता है। झील के किनारे स्थित नैना देवी मंदिर में प्रति वर्ष शरद ऋतु में बड़ा भारी मेला भरता है।
विभिन्न गतिविधियों का आनंद लेने वाले पर्यटकों के लिए यहां बहुत कुछ है : बोटिंग या भिन्न-भिन्न रंगों वाली नौकाएं चलाना, घुड़सवारी; छायादार पेड़ों से घिरे मार्गों की सैर; रोप-वे की सैर; और लकड़ी की बनी वस्तुओं, विभिन्न आकार की मोमबत्तियों बांस की टोकरियों की खरीदारी।
नैनी झील के चारों ओर हिमालय का शानदार दृश्य दिखाई देता है : नालना चोटी (2611 मी.) 5.6 कि.मी. - सबसे ऊंची है; लारिया कांटा (2481 मी.) 5.6 कि.मी.- दूसरी सबसे ऊंची चोटी है; स्नो-व्यू (2270 मी.) 2.4 कि.मी. - यहां तक घोड़े पर या केबल कार द्वारा पहुंचा जा सकता है ; डोरोथी सीट (2292 मी.) 4.3 कि.मी.- शहर का और इसके आसपास के क्षेत्रों का दृश्य यहां से दिखाई देता है; और लैंड्स इंग. (2118 मी.) 4.8 कि.मी.- यहां से खुर्पा ताल, एक धार्मिक केंद्र हनुमानगढ़ी (1951 मी.) 3 कि.मी. - के सुंदर दृश्य दिखाई देते हैं; स्टेट ऑब्जर्वेटरी (1951 मी.) 4 कि.मी. - एस्ट्रोनॉमिकल स्टडी का केंद्र और किलबरी (2194 मी.) 11 कि.मी. - ट्रेकिंग के लिए एक आदर्श स्थान है, इनके अलावा भी आपपास कई दर्शनीय स्थान हैं।
स्मारक एवं दर्शनीय स्थल

भीम ताल:
(1371 मी., 22 कि.मी.) नैनी से बड़ी, इस झील का नाम महाभारत ग्रंथ के एक पांडव नायक भीम के नाम पर पड़ा है। इस सुंदर रिजॉर्ट में रहने के अलावा बोटिंग और फिशिंग की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
भोवाली :

रानीखेत या अल्मोड़ा जाते हुए 11 कि.मी. दूर 1706 मी. की ऊंचाई पर यह एक प्रमुख फल-मार्किट है, यहां से केवल 3 कि.मी. दूर गोराकल है, जो गोल्लु देवता के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, कुमाऊं के लोग इनकी पूजा करते हैं।

कॉर्बेट नेशनल पार्क:
115 कि.मी. (बरास्ता कालाडूंगी) दूर भारत का प्रसिद्ध वन्य प्राणी उद्यान है। जो नामी शिकारी-जिम कार्बेट के नाम पर है। यह क्षेत्र 526 वर्ग कि.मी. में वनों से घिरा हुआ है।
यहां के वन्य प्रणाणियों में बाघ, चीता, जंगली भालू, आलसी भालू, हाथी, हिरण, अजगर और मगरमच्छ आदि शामिल हैं। पार्क में चिड़ियों की आश्चर्यजनक (585) प्रजातियां पाई गईं हैं।
जियोलीकोट :
1219 मी. 18 कि.मी. की दूरी पर यह एक हैल्थ-रिजार्ट और मधुमक्खी पालन केंद्र है। स्ट्राबेरी यहां बहुतायत में पैदा होती है। तितलियां पकड़ने वालों के लिए भी यह स्थान आकर्षण का केंद्र है।
नौकुचिया ताल:
1218 मी. 26 कि.मी. की दूरी पर यह नौ किनारों वाली झील है, जहां प्रवासी पक्षी आते हैं। झील में सैर करने के लिए यहां यॉच और पैडल-बोट दोनों उपलब्ध हैं।

रामगढ़ :
25 कि.मी. की दूरी पर यह स्थान कुमाऊं के बागानों के लिए जाना जाता है। यहां समृद्ध एस्टेट देखे जा सकते हैं।

सात ताल:
21 कि.मी. की दूरी पर मुख्य रिजॉर्ट के निकट तीन झीलें है ( मूल सात झीलों में से) जो भगवान राम, सीता और लक्ष्मण के नामों पर हैं। अन्य झीलें कुछ दूरी पर हैं।

रानीखेत

रानीखेत शहर मार्गदर्शिका


रानीखेत वह स्थान है, जहां से सर्वगिक हिमालय, हरे-भरे वन, शानदार पर्वत, नज़ाकत लिए पौधे और शानदार वन्य प्राणी सबसे अच्छी तरह देखे जा सकते हैं। प्रकृति और इसके तत्वों को पूरे शबाब में देखने के लिए, रानीखेत आदर्श स्थान है। ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान ने राजा सुधारदेव की रानी पद्मिनी का मन मोह लिया था। रानी ने इस स्थान को अपना निवास बना लिया, तभी से इसे रानीखेत, अर्थात् "क्वीन्स फील्ड" कहा जाने लगा। समुद्र तल से 1829 मी. की ऊंचाई पर स्थित यह हिल रिज़ार्ट निसंदेह पर्यटकों का स्वर्ग है। पहाड़ों से आती सुगंधित हवा, ताज़ा और शुद्ध होती है, चिड़ियों की चहचहाट, हिमालय की सुदंर दृश्यावली - देखने वाले को अवाक कर देती हैं।
वर्षा के दिनों में, इंद्रधनुषी रंगों के फूल चारों ओर खिल जाते हैं, पेड़ों की टहनियां फूलों से लद जाती हैं और बादलों से आंख-मिचौनी करती धूप पूरे रानीखेत में शानदार प्रभाव छोड़ती है।
जैसे ही सर्दी आती है, मुलायम रूप में गिरती बर्फ पूरे वातावरण को बर्फ की सफेद चादर में लपेट लेती है। प्रत्येक मौसम की अपनी अलग पहचान है। और कुल मिलाकर यह सब रानीखेत को हरेक-मौसम का गंतव्य स्थल बना देता है।
कैंटोनमेंट (यह स्थान ब्रिटिश सैनिकों के लिए एक हिल स्टेशन के रूप में चुना गया था और तदनुसार 1869 में यहां कैंटोनमेंट की स्थापना हुई थी) होने के कारण, कुमाऊं रेजमेंटल सेंटर, म्यूजियम और मेमोरियल रानीखेत की शान हैं।

स्मारक एवं दर्शनीय स्थल

चौबितया गार्डन :

फलों के पेड़ो, विशेषकर सेब के पेड़ो से लदा यह प्रकृतिक स्थान रानीखेत से 10 कि.मी. की दूरी पर है, जो अपनी फ्रूट-बैल्ट और फल अनुसंधान केंद्र के लिए प्रसिदंध है।

भालूदाम :
चौबतिया गार्डन से 3 कि.मी. दूर यह छोटा सा आर्टिफिशियल लेबल पूरे वर्ष पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना रहता है।

उपत कलिका :


अल्मोड़ा की ओर जाने वाली मुख्य सड़क पर शहर से 6 कि.मी. की दूरी पर इस स्थान पर देश के सबसे बेहतर माउंटेन गोल्फ लिंक (होल्स) हैं, जो चारों ओर से ओक के घने जंगलों से घिरा है।

द्वाराहाट:
रानीखेत से 38 कि.मी. दूर यह स्थान कभी कटयूरी राजाओं का स्थान रहा था। द्वाराहाट में में प्राचीन मूर्तियां बहुतायत में है।