Monday, November 30, 2009

हिमाचल प्रदेश:मनाली

हिमाचल प्रदेश:मनाली




कुल्लू से 40 कि.मी. उत्तर लेह को जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर घाटी केछोर पर स्थित है मनाली। यहां की दृश्यावली बहुत सुंदर है। यहां आप हिमाच्छादित चोटियां, शहर के बीच से बहती साफ पानी वाली ब्यास नदी को देख सकते हैं। दूसरी और चीड़ और देवदार के पेड़, छोटे-छोटे खेत और फलों के बागान हैं। छुट्टियां बिताने के लिए यह एक शानदार जगह है, पर्वतारोहण के शौकीनों के लिए कश्मीर घाटी में लाहौल, स्पीति, किन्नौर, लेह और जांसकर तक जाने के लिए यह एक लोकप्रिय स्थान है। इसे भारत का स्विटरजरलैंड भी कहा जाता है।



स्मारक एवं दर्शनीय स्थल

हडिम्बा मंदिर :




मनाली में कई आकर्षक स्थल हैं, किंतु ऐतिहासिक और पुरातात्विक रूप से निसंदेह, महाभारत के भीम की पत्नी, देवी हडिम्बा को समर्पित ढूंगरी मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। पेगोडा के आकार इस चार-मंजिला छत वाले मंदिर के द्वार पर पौराणिक आकृतियां और प्रतीक बने हुए हैं। यह मंदिर टूरिस्ट कार्यालय से लगभग 2.5 कि.मी. की दूरी पर देवदार के जंगलों के बीच स्थित है। 1533 ई. में बने इस मंदिर में आना एक सुखद अनुभव है। प्रति वर्ष मई के महीने में यहां बड़ा मेला लगता है।



मनु मंदिर :


पुराने मनाली शहर में बड़े बाजार से 3 कि.मी. दूर मनु ऋषि का मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि यह भारत में मनु ऋषि, जिन्हें धरती पर मानव जीवन का सृजनकर्ता माना जाता है, का एकमात्र मंदिर है।






क्लब हाउस :

शहर से 2 कि.मी. दूर मनाल्शु नाले के बाएं किनारे पर स्थित क्लब हाउस में इंडोर खेल सुविधाएं मौजूद हैं। इसके आसपास कुछ पिकनिक स्पॉट भी हैं।







तिब्बती मठ :

यहां 3 नवनिर्मित विविध रंगों से सजे मठ हैं, जहां से कारपेट और तिब्बती हस्तशिल्प खरीदे जा सकते हैं। दो मठ शहर में स्थित हैं और एक मठ आलियो, ब्यास नदी के बाएं किनारे स्थित है।

माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट :



कुल्लू की ओर जाने वाले मार्ग पर 3 कि.मी. दूर ब्यास नदी के बाएं किनारे पर स्थित है। इस इंस्टीट्यूट में ट्रेकिंग, माउंटेनियरिंग, स्कीइंग और वाटर-स्पोर्ट्स से संबंधित बेसिक और एडवांस प्रशिक्षण पाठ्क्रम आयोजित किए जाते हैं। अग्रिम बुकिंग द्वारा यहां से ट्रेकिंग और स्कीइंग के उपकरण किराये पर लिए जा सकते हैं। पर्यटक यहां का बेहतरीन शो-रूम भी देख सकते हैं।

वशिष्ठ के गर्म जल के झरने और मंदिर (3 कि.मी.) :


रोहतांग-दर्रा जाते हुए ब्यास नदी के बाएं किनारे पर एक छोटा सा दर्शनीय गांव है, वशिष्ठ। यह अपने गर्मजल के झरनों और मंदिरों के लिए जाना जाता है। इसके पास ही पिराममिड के आकार का पत्थरों से बना वशिष्ठ मुनि का मंदिर है। यहां भगवान राम का भी एक मंदिर है। गर्मजल केप्राकृतिक सल्फरयुक्त झरनों पर पुरुषों और महिलाओं के स्नान केलिए अलग-अलग तालाब बने हैं, जहां सदैव पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। पास में ही तुर्की स्टाइल के फव्वारों से युक्त स्नानघर भी बने हुए हैं। स्नान के लिए झरनों से गर्म जल की व्यवस्था की गई है।

नेहरु कुंड:
लेह की ओर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर 5 कि.मी. की दूरी पर ठंडे पानी का एक प्राकृतिक झरना है, जो पं. जवाहरलाल नेहरु के नाम पर है, अपने मनाली प्रवास के दौरान वे इसी झरने का पानी पिया करते थे। माना जाता है कि यह झरना ऊंचे पहाड़ों में स्थित भृगु झील से अवतरित हुआ है।

सोलांग घाटी :


13 कि.मी. दूर सोलांग गांव और ब्यास कुंड के बीच यह एक शानदार घाटी है। सोलांग घाटी से ग्लेशशियर और हिमाच्छादित पर्वत और चोटियां दिखाई देती हैं। यहां स्कीइंग के लिए शानदार ढाल हैं। माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट ने प्रशिक्षण के उद्देश्य से यहां एक स्की-लिफ्ट लगाई है। यहां मनाली का माउंटेनियरिंग और एलाइट स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट है। अब यहां कुछ होटल भी बन गए हैं। यहां विंटर स्कीइंग फेस्टिवल आयोजित किया जाता है। इस जगह स्कीइंग का प्रशिक्षण दिया जाता है।


कोठी :

रोहतांग-दर्रा जाते हुए, मनाली से 12 कि.मी. दूर कोठी एक सुंदर दृश्यावली वाला स्थान है। यहां रिज पर पी.डब्ल्यू.पी. का रेस्ट हाउस बना है, जहां से संकरी होती घाटी और पहाड़ों का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। यहां बड़ी संख्या में फिल्मों की शूटिंग होती है तथा कवियों, लेखकों और शांत माहौल पसंद करने वालों के लिए यह एक आदर्श स्थान है।

रहाला जल-प्रपात:

रोहतांग-दर्रा जाते हुए, मनाली से 16 कि.मी. दूर है। यदि आप कोठी से पुराने रोड पर पैदल मरही की ओर जाएं तो आपको जल-प्रपात का शानदार नजारा दिखेगा। यह एक सुंदर पिकनिक स्पॉट भी है।

रोहतांग-दर्रा (3979 मी.):


रोहतांग-दर्रा कीलोंग/लेह राजमार्ग पर मनाली से 51 कि.मी. दूर है। यहां से पहाड़ों का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। यह दर्रा प्रति वर्ष जून से अक्तूबर तक खुला रहता है किंतु पर्वतारोही इसे पहले भी पार करते हैं। यह लाहौल स्पीति, पांगी और लेह घाटियों का प्रवेश-द्वार है, जैसे जोजिला-पास लद्दाख का प्रवेश-द्वार है। यहां से ग्लेशियरों, चोटियों और लाहौल घाटी से बहती चंद्रा नदी के सुंदर दृश्य दिखाई देते हैं। यहां थोड़ी बाईं ओर गेपान की जुड़वां चोटियां हैं। गर्मियों के दौरान (मध्य जून से अक्तूबर) मनाली-कीलोंग/दारचा, उदयपुर, स्पीति और लेह के बीच बसें चलती हैं।

अर्जुन गुफा :

मनाली से 4 कि.मी. दूर, नग्गर की ओर जाते हुए सड़क से 1 कि.मी. ऊपर प्रिनी गांव के निकट एक गुफा है, जहां अर्जुन ने तपस्या की थी। पहाड़ों का सुंदर दृश्य देखने के लिए यहां 1/2 दिन की अच्छी कसरत हो जाती है।

जगतसुख :

जगतसुख मनाली से 6 कि.मी. दूर नग्गर की ओर जाते हुए ब्यास नदी के बाएं किनारे पर स्थित है। यह स्थान शिखर रूप में बने भगवान शिव और संध्या गायत्री के दर्शनीय प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।

हिमाचल प्रदेश; कुल्लू

हिमाचल प्रदेश; कुल्लू

बहुत आकर्षक और सुंदर कुल्लू घाटी ब्यास नदी के दोनों ओर फैली है। यह घाटी नदी के उत्तर से दक्षिण की ओर फैली है तथा क्षेत्रफल में 80 कि.मी. लंबी और लगभग 2 कि.मी. चौड़ी है। सुंदर घाटियों और बहते जलप्रवाह, पूर्व तथा पश्चिम में छोटी-छोटी नदियों से घिरे घास के मैदान, पर्यटकों ट्रेकिंग और माउंटेनियरिंग के शौकीनों तथा मैदानों की धूल और गर्मी से तंग आए लोगों को आकर्षित करते हैं, जो हिमालय की स्वच्छ हवा में सांस लेना चाहते हैं और पहाड़ों की सुंदर दृश्यावली देखना चाहते हैं। यह घाटी खास तौर पर हाथ की बनी रंगीन शालों और कुल्लू टोपियों के लिए प्रसिद्ध है।
स्मारक एवं दर्शनीय स्थल

बिजली महादेव मंदिर (2460 मी.):

कुल्लू से 10 कि.मी. दूर ब्यास नदी के पार, बिजली महादेव मंदिर, मंदिरों से भरे इस जिले में, एक आकर्षक मंदिर है। 10 कि.मी. लंबे रास्ते से यहां पहुंचा जा सकता है। मंदिर से कुल्लू और पार्वती घाटियों का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। बिजली महादेव मंदिर का 60 फुट ऊंचा स्तंभ सूर्य के प्रकाश में चांदी की सुई के समान चमकता दिखाई देता है। कहा जाता है कि यह ऊंचा स्तंभ प्रकाश के रूप में पवित्र आशीष प्रदान करता है। शेष कथा मंदिर के पुजारी से सुनी जा सकती है, जो अविश्वसनीय किंतु सत्य है।
रघुनाथजी मंदिर:

धौलपुर से 1 कि.मी. दूर रघुनाथजी इस घाटी के मुख्य देवता हैं।

वैष्णों देवी मंदिर:
धौलपुर से 4 कि.मी. दूर, एक छोटी सी गुफा में माता वैष्णों देवी का मंदिर है।

कैंपिंग साइट रायसन (1433 मी.):
कुल्लू से 16 कि.मी. दूर प्रकृति के नजारों के बीच यह स्थान छुट्टियां बिताने और यूथ कैंपों के आयोजन के लिए आदर्श है। घाटी के इस भाग में बड़ी संख्या में बागान हैं। हि.प्र.प.वि.नि. ने यहां ठहरने के लिए आरामदेह लॉग-केबिन बनाए हुए हैं।

कटरैन (1463 मी.) :

घाटी का मध्यवर्ती और सबसे खुला क्षेत्र, कटरैन, मनाली के रास्ते में कुल्लू से 20 कि.मी. दूर है। सेब के बागान और ट्राउट-हेचरी यहां के मुख्य आकर्षण हैं। यहां स्थित पातिलकुल्ह सरकारी ट्राउट-फार्म मधुमक्खी पालन के लिए प्रसिद्ध है। यहां हि.प्र.प.वि.नि. के होटलों में ठहरा जा सकता है।
नग्गर (1760 मी.) :
ब्यास नदी के बाएं किनारे पर, नग्गर एक शानदार जंगलों की ढाल पर स्थित एक सुंदर स्थान है। 1400 वर्ष पहले यह तत्कालीन कुल्लू की राजधानी हुआ करता था। यहां बड़ी संख्या में प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनमें विष्णु, त्रिपुरा सुंदरी एवं भगवान कृष्ण का मंदिर मुख्य हैं। कार और जीपें आसानी से नग्गर कैसल तक जाती है। चंद्रखानी-पास और दूर मलाना घाटी तक जाने के लिए नग्गर एक बेस है।

कासोल (1640 मी.):

कुल्लू से 42 कि.मी. दूर, पार्वती नदी के किनारे, कासोल छुट्टियां बिताने की एक अच्छी जगह है। सुंदर खुले स्थान पर कासोल में पहाड़ी की ढाल पार्वती नदी केदूर तक फैले सफेद रेतीले क्षेत्र तक जाती हैं। यह क्षेत्र ट्राउट-फिशिंग के लिए जाना जाता है।
मनीकरन (1700 मी.) :
कुल्लू से 45 कि.मी. एवं कासोल के मात्र 3 कि.मी. दूर, मनीकरन अपने गर्म पानी के झरनों के लिए प्रसिद्ध है। हजारों लोग यहां गर्म पानी के झरनों मे डुबकी लगाते हैं। यहां का पानी इतना गर्म होता है कि उसमें दाल, चावल, सब्जी आदि तक पकाए जा सकते हैं। यह स्थान हिंदुओं और सिक्खों के तीर्थस्थलों केरूप में भी प्रसिद्ध है। भगवान राम और शिव मंदिरों के अलावा यहां एक गुरुद्वारा भी है। एक पुरानी कहावत के अनुसार, मनीकरन का नाम भगवान शिव और पार्वती से जुड़ा है, यहां मां पार्वती के कान की बाली गुम हो गई थी, जिस कारण पार्वती नदी के किनारे गर्म पानी का एक स्रोत बन गया। यहां पुजारियों के मुख से यह कथा सुनना अधिक लाभकारी और आनंददायक है। मंदिरों और गुरुद्वारे में ठहरने की पर्याप्त जगह है। इसके अलावा यहां हि.प्र.प.वि.नि. के होटल में ठहरा जा सकता है।

मलाना (2652 मी.):
सुंदर चंद्रखानी-पास से थोड़ा आगे मलाना गांव है, जो जामलु के मंदिर और अपनी विशेष सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन शैली केलिए जाना जाता है। माना जाता है कि मलाना विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र है। यहां की जीवन-शैली और सामाजिक व्यवस्था को जानने के लिए इस गांव की यात्रा श्रेयस्कर होगी।

बाजौरा :
कुल्लू से 15 कि.मी. पहले बाजौरा मुख्य सड़क पर स्थित है, जहां गांव से लगभग 200 मी. दूर खिले स्थान में मुख्य सड़क और ब्यास नदी के बीच बालेश्वर महादेव मंदिर है। माना जाता है कि यह मंदिर 8वीं शताब्दी के मध्य में बना था।

लार्जी (957 मी.):
कुल्लू के दक्षिण में 34 कि.मी. दूर एक छोटा सा स्थान, जो ट्राउट-फिशिंग के लिए जाना जाता है। यहां एक स्तब्ध कर देने वाले स्थान पर पीडब्ल्यूडी का रेस्ट हाउस है, जो सैंज और तीर्थन नदियों केसंगम पर बना है, यहां के बाद ये नदियां ब्यास में मिल जाती हैं। इस स्थान पर अधिकांशत: मछली पकड़ने वालों की भीड़ लगी रहती है।

बंजर (1524 मी.):
कुल्लू के दक्षिण में 58 कि.मी. दूर, यह स्थान तीर्थन नदी के जल में मछली पकड़ने के लिए अच्छा माना जाता है।

हिमाचल प्रदेश:धर्मशाला

धर्मशाला:हिमाचल प्रदेश


धर्मशाला कांगड़ा जिले का जिला मुख्यालय है। यह एक हिल स्टेशन है जो कांगड़ा शहर से लगभग 18 कि.मी. दूर पूर्वोत्तर दिशा में धौलाधार पर्वत श्रंखला के विस्तार में स्थित है। इस हिल स्टेशन में ओक और नुकीली पत्तियों वाले वृक्षों के वन हैं तथा शहर के तीनों ओर हिमाच्छादित पर्वत हैं, जबकि सामने की ओर घाटी फैली हुई है। शायद धर्मशाला ही ऐसा हिल स्टेशन है जहां किसी अन्य हिल रिज़ार्ट की अपेक्षाकृत अधिक बड़ी स्नो-लाइन देखी जा सकती है और यदि सुबह जल्दी यात्रा आरंभ की जाए तो स्नो-प्वाइंट पर पहुंचना संभव है।
1905 में, एक दुखद घटना घटी, जब भूकंप ने इस शहर को पूरी तरह से लील दिया था। पुनर्निर्माण के बाद धर्मशाला एक शांत रिज़ार्ट के रूप में फला-फूला। इसे दो अलग-अलग विशेष भागों में बांटा गया है। लोअर धर्मशाला में सिविल कार्यालय और व्यावसायिक संस्थानों के साथ-साथ न्यायालय तथा कोतवाली बाज़ार हैं तथा अपर धर्मशाला में वे नाम दिखाई देते हैं जो इसके इतिहास से मेल खाते हैं। जैसे मेकलॉड गंज और फॉरबिस गंज। 1960 से, जब धर्मशाला माननीय दलाई लामा का अस्थाई मुख्यालय बना था, इस स्थान को "लिटिल ल्हासा इन इंडिया" के रूप में अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली है।
स्मारक एवं दर्शनीय स्थल
मेकलॉड गंज :
यहां अनेक आवासीय भवन, रेस्टोरेंट, एंटीक और क्यूरियों शॉप्स के साथ-साथ प्रसिद्ध तिब्बती संस्था हैं, जो मेकलॉड गंज का महत्व बढ़ाते हैं। पवित्र गुरु दलाई लामा के वर्तमान निवास स्थान के सामने बुद्ध मंदिर दर्शनीय है। तिब्बती इंसटीट्यूट ऑफ परफार्मिंग आर्ट्स (TIPA) मेकलॉड गंज से 1 कि.मी. की पैदल दूरी पर है जहां तिब्बती नृत्य और थियेटर कला की अनेक परंपराओं को संजोकर रखा गया है। यहां अप्रैल माह के दूसरे शनिवार को 10 दिवसीय लोकनृत्य ओपेरा का आयोजन किया जाता है। मेकलॉड गंज में एक तिब्बती हस्तशिल्प केंद्र भी है और यहां से लगभग 10 मिनट की पैदल दूरी पर रविवार के दिन लगने वाला स्थानीय बाज़ार भी है।
भागसुनाग फॉल्स :
लोअर धर्मशाला से 11 कि.मी. दूर भागसुनाग तक सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है, यहां एक पुराना मंदिर, ताज पानी का झरना और एक रेस्टोरेंट भी है। यहां से 2 कि.मी. आगे खूबसूरत भागसुनाग फॉल्स है, जो देखने लायक है।
सेंट जॉन चर्च :
जंगल में स्थित सेंट जॉन चर्च तक लोअर धर्मशाला से मेकलॉड गंज और फॉरिस्ट गंज के बीच 8 कि.मी. सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। यहां भारत के पूर्व वॉयसराय लार्ड एल्गिन का एक स्मारक है, जिसे 1863 में मृत्यु के बाद यहां दफनाया गया था।
डल झील :
लोअर धर्मशाला से सड़के मार्ग से 11 कि.मी. दूर यह झील पहाड़ियों और फर के ऊंचे पेड़ों से घिरी है। तिब्बती बच्चों के गांव के समीप स्थित धर्मशाला से बाहर जाने तथा ट्रेकिंग के लिए यह आरंभिक स्थान है।
धर्मकोट :
धर्मशाला से 11 कि.मी. दूर यह स्थान दूर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। इस पिकनिक स्पॉट से कांगड़ा घाटी , पोंग डैम लेक और धौलाधार श्रंखला का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।
त्रिउंड (2975 मी.):
धर्मशाला से 20 कि.मी. दूर त्रिउंड 2975 मी. की ऊंचाई पर सदैव बर्फ से ढकी धौलाधार पर्वतों की तलहटी में स्थित है। त्रिउंड से 5 कि.मी. दूर क्षेत्र से स्नो-लाइन आरंभ होती है। यह एक प्रसिद्ध पिकनिक और ट्रेकिंग स्पॉट है। यहां वन विभाग के रेस्ट-हाउस में ठहरा जा सकता है, किंतु पानी लाने के लिए यहां से 2 कि.मी. दूर जाना पड़ता है। धर्मशाला से इस स्थान तक रोप-वे का निर्माण किया जा रहा है।
युद्ध स्मारक :
सुंदर दृश्यावली से घिरा यह स्मारक धर्मशाला के प्रवेश स्थल के समीप है। अपनी मातृभूमि की रक्षा में बहादुरी से लड़े वीरों की स्मृति में यह स्मारक बनाया गया है।
कुणाल पाथरी :
कोतवाली बाज़ार से 3 कि.मी. की समतल सड़क यात्रा के बाद चट्टान पर बने स्थानीय देवी के इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
कारेड़ी :
कोतवाली बाज़ार से 22 कि.मी. दूर इस रेस्ट हाउस में रात्रि-प्रवास किया जा सकता है। रेस्ट हाउस से 13 कि.मी. दूर स्थित कारेड़ी झील दर्शनीय है। यहां दुर्वासा और काली के मंदिर हैं।
ज्वालामुखी मंदिर :
ज्वालामुखी का प्रसिद्ध मंदिर कांगड़ा से 30 कि.मी. और धर्मशाला से 56 कि.मी. दूर स्थित है। "प्रकाश की देवी" को समर्पित यह उत्तर भारत के प्रसिद्ध हिंदु मंदिरों में सेे एक है। यहां किसी प्रकार की कोई मूर्ति नहीं है, केवल आग की लपट को देवी का रूप माना जाता है। श्रद्धालुभक्त प्राकृतिक रूप से पवित्र चट्टान से प्रकट होने वाली जलती और चमकीली नीली लौ की पूजा करते हैं। मंदिर का सोने का छतर सम्राट अकबर की भेंट है। अप्रैल माह के आरंभ में और अक्तूबर माह के मध्य नवरात्रों में यहा दो महत्वपूर्ण मेलों का आयोजन होता है। यात्रियों के ठहरने के लिए यहां आधुनिक सुविधाओं वाले होटल, धर्मशालाएं, विश्राम गृह और हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम के होटल हैं। (कृपया मंदिर की विशेष रूप से बनी वेबसाइट देखें)।
डेहरा गोपीपुर :
यह ब्यास नदी के किनारे स्थित है। आसपास के विभिन्न क्षेत्रों जैसे पोंग डैम, पाटन, कुर्न और नादौन के लिए डेहरा का एक बेस के रूप में उपयोग संभव है। यहां से प्रसिद्ध चिन्तपूर्णी मंदिर के दशर्नार्थ भी जा सकते हैं।
त्रिलोकपुर :
यह स्थान धर्मशाला से 41 कि.मी. दूर है और सड़क मार्ग से त्रिलोकपुर के पवित्र गुफा मंदिर पहुंचा जा सकता है। यहां भगवान शिव को समर्पित स्टेलेटिट और स्टेलेगेमिट हैं। गुफा के ऊपर एक महल और बारादरी के अवशेष हैं। यह महल सिख शासन के दौरान कांगड़ा पहाड़ी के गवर्नर लहना सिंह मजीठा का है।
नूरपुर :
धर्मशाला से 66 कि.मी. दूर स्थित नूरपुर अपने प्राचीन किले और ब्रजराज मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। नूरपुर का नाम 1762 में उस समय पड़ा जब मुगल सम्राट जहांगीर ने इसे अपनी पत्नी नूरजहां का नाम दिया। नूरपुरी शालें अच्छी होती हैं। यात्रियों के ठहरने के लिए यहां लोक निर्माण विभाग का रेस्ट हाउस है।
मसरुर :
अपने मोनोलिथिक रॉक मंदिरों के लिए प्रसिद्ध मसरुर कांगड़ा के 15 कि.मी. दक्षिण में स्थित है। यहां चट्टानों को काटकर बनाए गए इंडो-आर्यन शैली के शानदार नक्काशी वाले 15 मंदिर हैं। आंशिक रूप से खंडहर हो चुके ये मंदिर शिल्पकला से निर्मित अलंकरणों से सुसज्जित हैं। इन्हें इस तरह बनाया गया है कि ये महाराष्ट्र स्थित एलौरा के महान कैलाश मंदिर की झलक देते हैं। मुख्य मंदिर भगवान राम, लक्ष्मण और सीता को समर्पित है।

Saturday, November 28, 2009

हिमाचल प्रदेश:किन्‍नौर






किन्‍नौर का परिचय हिमाचल प्रदेश का एक जनजातीय जिला किन्नौर ६,४०७ कि.मी. में फैला एक ऐसा स्थान जहाँ का इतिहास बहुत प्राचीन हैं। यहां बहने वाली सतलज नदी के किनारे-किनारे चलकर ही किन्नौर यात्रा का आनंद लिया जा सकता हैं। यहाँ से भारत का सबसे महत्वपूर्ण वं संवेदनशील ‘हिन्दुस्तान-तिब्बत मार्ग‘ गुजरता हैं। संवेदनशील होने के कारण पर्यटकों को इस क्षेत्र में भ्रमण के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार से परिमट जारी कराना पडता हैं। शिमला से किन्नौर भ्रमण करते हुएद्व लाहुल-स्पिति से होते हुए मनाली पहुंचा जा सकता हैं।



दर्शनीय पर्यटन स्‍थल




सांगला

सांगला (२,८६० मी.) किन्नौर क्षेत्र में सबसे बडा एवं दर्शनीय गांव हैं, जो करचम से १८ कि.मी. दूर हैं। यहां केसर के खेत, फलोद्यान और ऊपर जाने पर आल्पस के चरागाह हैं। किन्नौर कैलाश चोटी मन मोह लेती हैं। यहां से काली देवी का किले जैसा मंदिर ‘कमरू फोर्ट‘ भी देखा जा सकता हैं।.

करचम


करचम (१८९९ मी.) सतलज और बस्पा नदियों के संगम स्थल जोअरी, वांग्तु और तापरी गांवों के बाद आता हैं, जहाँ से सुन्दर बस्पा और सांगला घाटी प्रारंभ होती हैं।......






चिटकुल

चिटकुल (३,४५० मी.) सांगला घाटी में अंतिम गांव हैं, जो सांगला से २६ कि.मी. दूर स्थित हैं। भोजपत्र नामक वृक्षों के जंगलों से घिराद्व यह आल्पस के खूबसूरत चरागाहों और हिम भूदृश्यों के लिए जाना जाता हैं।...... 
पोवारी
पोवारी रामपुर से ७० कि.मी. दूर राष्ट्रीय राजमार्ग २२ पर अंतिम मुख्य ठहराव हैं।......


रिकोग पिओ



रिकोग पिओ (२६७० मी.) शिमला से २३१ कि.मी. और पोवारी से ७ कि.मी. दूर स्थित, किन्नौर जिले का मुख्यालय हैं। यहाँ स्थित उप-जिला मुख्यालय से किन्नौर घाटी में पर्यटन हेतु अनुमति ली जा सकती हैं। निकट ही भगवान बुद्ध की प्रतिमायुक्त कालाचक्र मंदिर से किन्नौर कैलाश का सुन्दर दृश्य दिखाई देता हैं।......

कोठी



कोठी, रिकोंग पिओ से मात्र ३ कि.मी. दूर स्थित हैं, जहां चंडिका देवी का मंदिर हैं। पहाडों की गोद और देवदार के झुरमुट के बीच स्थापित इस मंदिर की शैली और शिल्प असाधारण हैं। देवी की स्वर्ण-निर्मित प्रतिमा अप्रतिम हैं।......




कल्पा



कल्पा रिकोंग पिओ से ७ कि.मी. दूर स्थित ह। नदी के पार, कल्पा के सामने किन्नर कैलाश श्रृंखला हैं। भोर के समय जब उगत सूर्य की लाल और हल्की सुनहरी रश्मियां हिमानी चौटियों की चूमती हैं तो वह दृश्य बडा नयनाभिराम होता हैं।......
पांगी
पांगी रिकोंग पिओ से चिलगोजा चीड के जंगलों से गुजरते हुए १० कि.मी. दूर स्थित हैं। यह सेब के उद्यानों से घिरा हैं, जहां बुद्ध मंदिर, शेशरी नाग मंदिर दर्शनीय हैं।......






रिब्बा


रिब्बा पोवारी से १६ कि.मी. दूर राष्ट्रीय राजमार्ग २२ पर स्थित, अपने अंगूर के बगीचों और अंगूर से बनाई गई स्थानीय शराब ‘अंगूरी‘ के लिए मशहूर है।......


मूरांग
मूरांग राष्ट्रीय राजमार्ग २२ पर पोवारी से २६ कि.मी. दूर, खूबानी की वाटिकाओं के मध्य स्थित हैं।......


पुह


पुह राष्ट्रीय राजमार्ग २२ पर पोवारी से ५८ कि.मी. दूर स्थित हैं जहां हरियाले खेत, खूबानी व अंगूर के बगीचे और बादाम के उद्यान देखे जा सकते हैं। यहां ठहरने की आरामदायक सुविधाएं हैं।......
नाको
नाको राष्ट्रीय राजमार्ग २२ से थोडा अलग यांगथांग लिंक रोड पर खूबसूरत गांव हैं, जो निर्जन हांगरांग घाटी का सबसे बडा गांव हैं।......


चांगो एवं लियों


चांगो एवं लियों सेब के उद्यानों से भरपूर हैं। चाँगो में बुद्ध मठ भी स्थित है।......



सुमधो


सुमधो स्पिति एवं पारे-चू नदियों के संगम स्थल पर स्थित, किन्नौर का अंतिम गाँव हैं।......


ठहरने हेतुः



स्बाला गेस्ट हाउस, रेकोंग पिओ, फोन २२२८५२
होटल बंजारा, सांगला, फोन ६५१३८२८
रूपिन रीवर गेस्ट हाउस, सांगला फोन २४४२२५, २४४२०५
किन्नर कैलाश कॉटेज, कल्पा फोन २२६१५९
शिवालिका गेस्ट हाउस, कल्पा फोन २२६१५८
पी.डब्ल्यूडी रेस्ट हाउस तथा फोरेस्ट गेस्ट हॉउस उपलब्ल हैं
ट्रेवल एजेन्ट
स्नोलाईन ट्रावेल्स, छोलिंग, फोन २५३१८७
नेशनल ट्रेवलर, रेकोगं पिओ, फोन २२२२४८





















Wednesday, November 25, 2009

डलहौजी (हिमाचल प्रदेश)/ चंबा

डलहौजी (हिमाचल प्रदेश)
जिस प्रकार हिमाचल प्रदेश के शिमला नगर को बसाने का श्रेय लेफ्टिनेंट रास (1819) व ले. कैंडी 1821 को जाता है। उसी तरह डलहौजी जैसे जंगली क्षेत्र को लार्ड डलहौजी (1854) ने बसाकर अंग्रेजों की ठण्डे पहाड़ और एकांत स्थल में रहने की इच्छा को पूरा किया।
सन् 1850 में चंबा नरेश और ब्रिटिश शासकों के बीच डलहौजी के लिए एक पट्टे पर हस्ताक्षर हुए थे। लार्ड डलहौजी यहां रहने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्हीं के नाम पर इस स्थान का नाम डलहौजी रखा गया।समुद्रतल से 2039 मीटर ऊंचाई पर स्थित डलहौजी 13 किमी में फैला एक ऐसा हरयावल टापू है जहां कुछ दिन गुजारना स्वयं में अनोखा अनुभव है। पांच पहाडिय़ों बेलम, काठगोल, पोटरेन, टिहरी और बकरोता से घिरा डलहौजी सुन्दर और स्वच्छ शहर है। यहां हिन्दी, पंजाबी, तिब्बती और अंग्रेजी भाषी लोग रहते हैं।डलहौजी देवदार के घने जंगलों में घिरा हिमाचल का प्रमुख पर्यटक स्थल है। यहां की ऊंची-नीची पहाडिय़ों पर घूमते हुए पर्यटक रोमांचित हो उठता है। पहाडिय़ों के बीच कल-कल बहती चिनाब, ब्यास और राबी नदियां, दूर-दूर तक फैली बर्फीली चोटियां डलहौजी की रमणीयता को चार चांद लगा देती है। पंडित जवाहर लाल नेहरू को डलहौजी बहुत पसंद था। वे इसे हिमाचल की गुलमर्ग कहते थे।


सत्तधारा - डलहौजी से डेढ़ किलोमीटर दूर सतधारा नाम का चश्मा है। पहले यहां सात धाराएं बहती थीं पर अब एक मोटी दार ही रह गई है। यह जल कई रोगों को निवारण करता है। यहां पर्यटक विभाग का कैफेटेरिया है जहां पर्यटक चाय नाश्ता कर तरोताजा होते है।



पंचपुला - यहां के बड़े डाकघर से दो किमी की दूरी पर स्थित पंचपुला एक सुंंदर सैरगाह है। पंचपुला का अर्थ है पांच पुल। इन छोटे-छोटे पांच पुलों के नीचे से कल-कल बहती जलधारा देखने योग्य है। यहां एक प्राकृतिक जलकुंड भी है, जिसके निर्मल जल में चमकते पत्थर बहुत आकर्षक लगते हैं।


अजीत सिंह की समाधि - डलहौजी का विशेष आकर्षण बीसवी शताब्दी के पितामह अजीत सिंह की समाधि है। सन् 1905 में जब सारे पंजाब की पुलिस उनके पीछे लगी थी तब अजीत सिंह, जो शहीद भगत सिंह के चाचा थे, मुसलमान के वेष में यहां पहुंचे थे। यहीं के काबुल के रास्ते ईरान, इटली, ब्राजील में देश की सेवा करते रहे। चालीस वर्षों तक देश के बाहर रहने के बाद 1946 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें स्वदेश बुला लिया। 14 अगस्त 1947 को अजीत सिंह डलहौजी में थे। उन्होंने रात 12 बजे भारत के स्वतंत्र होने की घोषणा सुनी और सुबह पांच बजे शरीर त्याग दिया। अजीत सिंह की समाधि आज भी देश प्रेमियों को उस बहादुर सपूत की याद दिलाती है।



कालाटोप - पर्यटकों के लिए डलहौजी से आठ किमी दूर और समुद्रतल से 2440 मीटर ऊंचाई पर स्थित कालाटोप सर्वोत्तम पिकनिक स्थल है। कालाटोप के प्राकृतिक दुश्य बड़े मनोरम लगते हैं। यहां भौंकने वाला हिरण और काले भालू देखने को मिलते हैं। कालाटोप तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग और रहने के लिए वन विभाग का विश्राम गृह है।


बकरोता की पहाडिय़ां - डलहौजी से पांच किमी दूर 2085 मी ऊंचाई पर बकरोता पहाडिय़ों से हिमाच्छादित चांदी से चमकते पहाड़ देखने में बड़े सुन्दर लगते हैं। प्रकृति प्रेमी इन्हें देख रोमांचित हो उठते है।


डायन कुंड - डलहौजी से दस किलोमीटर दूर 2750 मीटर ऊंचाई पर डायन कुंड स्थित है। यहां चिनाब, ब्यास और रावी नदियां पास-पास बहती है। तीनों नदियों का सांप की तरह बलखाकर बहना सैलानियों को आश्चर्य चकित कर देता है। कुदरत का ऐसा सुन्दर नजारा शायद ही कहीं अन्यत्र देखने को मिले।


सुभाष बावली - आजाद हिन्द फौज के कर्मठ नेता सुभाष चन्द्र बोस के खिलाफ कलकत्ता की प्रेसीडेंसी जेल में विष देकर उन्हेें मार देने का अंग्रेजों द्वारा सुनियोजित षडय़ंत्र चलाया जा रहा था। जब ब्रिटिश सरकार को उनकी बीमारी की सूचना मिली। तब उन्हें कुछ समय के लिए पैरोल पर रिहा किया गया। डलहौजी में नेता सुभाष बावली है। इसके पास ही नेता जी की याद में सुभाष चौक बनाया गया है। डलहौजी से यह स्थान एक किलोमीटर दूर है।


खजियार - पर्यटक डलहौजी घूमने आए और खजियार न जाए तो यात्रा अधूरी रहेगी। समुद्रतल से 1890 मीटर ऊंचाई पर स्थित खजियार पर्यटकों के लिए प्रकृति का अनुपम उपहार है। देवदार के घने ऊंचे वृक्षों के बीच डेढ़ किलोमीटर लंबा और एक किलोमीटर चौड़ा तश्तरीनुमा हरा-भरा मखमली घास का मैदान और बीच में छोटी सी झील है हालाकी झील का पानी अभी सूख गया है फिर भी यहाँ   के सौंदर्य को देखकर पर्यटक ठगा सा  रह जाता है।
खुली प्रकृति में बेखटके घुमने और चांदनी रातों में खुले आकाश के नीचे फुरशत से तम्बू में रहने वालो के लिए  खजियार अच्छी जगह है यहाँ की शाम  हर सैलानी को शुकून देती है बच्चो को दोड़ने और खुशी से चिल्लाने का मोका मिलता है यहाँ घुड़सवारी करना मनोरंजक और रोमांचकारी  है

कहाँ ठहरें :HPTDC  होटल देवदार,फ़ोन न:(236333),होटल पारूल फ़ोन न:(224344)
इन्हीं विशेषताओं के कारण 7 जुलाई 1992 के दिन स्विटजरलैंड के राज प्रतिनिधि टी बलेजर ने खजियार को मिनी स्विटजरलैंड के रूप में नामांकित किया था। खजियार को विश्व का 160 वां मिनी स्विटजरलैंड होने का गौरव प्राप्त है। डलहौजी से खजियार 27 किमी दूर है। यहां रात ठहरने और खाने पीने के लिए भव्य होटल और पर्ण कुटीरें हैं।


डलहौजी में जहां कई दर्शनीय स्थल है वहीं यहां देस के जाने-माने लोगों की यादें रची बसी है। सन् 1883 में देश के महान कवि एवं शिक्षक गुरुवर रविन्द्रनाथ टैगोर यहां रहे थे और उन्होंने डलहौजी के नैसर्गिक सौंदर्य पर मुग्ध होकर एक कविता लिखी थी। सन् 1925 में स्व. जवाहर लाल नेहरू अपने परिवार के साथ यहां रायजादा हंस राज की कोठी में ठहरे थे। पंजाबी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक नानक सिंह ने अपनी जीवन का काफी साहित्य इस शांत पहाड़ी शहर में लिखा।


कैसे पहुंचे
निकटतम हवाई अड्डा- कागंरा से 140 किमी, अमृतसर से 192 व जम्मू से 190 किमी। रेल्वे स्टेशन- पठानकोट से 80 किमी। सड़क मार्ग- दिल्ली चंडीगढ़, पठानकोट, शिमला आदि स्थानों से नियमित बसें उपलब्ध। डलहौजी में कहां ठहरें-डलहौजी में समस्त सुविधाओं से युक्त डीलक्स पांच सितारे होटलों से लेकर मध्यम श्रेणी वाले होटलों तथा गेस्ट हाउसों की श्रृंखला उपलब्ध है। डलहौजी कब जायें- उपयुक्त समय - अप्रैल से नवंबर तक|
चंबा

चंबा  डलहौज़ी से ५६ किमी  दूर है  सैलानी डलहौज़ी से चंबा दिन भर घूम कर भी शाम को वापस डलहौज़ी आ सकते है खाजिअर से चंबा केवल ४३ किमी दुरी पर है| यहाँ के रजा साहिल वर्मा ने अपनी पुत्री राजकुमारी  चम्पावती  के नाम पर इस शहर  को बसाया था| यहाँ लक्ष्मीनारायण मंदिर,रंग महल, भूरीसिंह म्युजीयम,चौगान  आदि दर्शनीय है |चंबा के गाँव और सीढीनुमा  खेत यहाँ की  यात्रा को दिलचस्प बना देते है |चंबा से आगे मणिमहेश  यात्रा प्रसिद्ध  है 
कहाँ ठहरे :होटल  इरावती (HPTDC) फ़ोन न :222671, होटल चम्पक फ़ोन न :222774,होटल अरोमा पैलेस फ़ोन न :225177,होटल जिम्मी इन फ़ोन न:224748,  होटल आर्चड हट फ़ोन न 222607

Tuesday, November 24, 2009

हिमाचल प्रदेश

हिमाचल प्रदेश का परिचय हिमालच प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा २५ जनवरी, १९७१ को मिला। इसे शिमला और आसपास की ३० पहाडी रियासतों को मिलाकर बनाया गया था। एक तरफ इस प्रदेश की ऊंची पहाडयों पर चांदी की तरह चमकती सफेद बर्फ सैलानियों का अपनी ओर आकृष्ट करती हैं तो दूसरी ओर पहाडों की गोद से उतरती रावी, व्यास, चिनाब और सतजल नदियां अलग ही छटा बिखेरती हैं। उस पर फूलों से महकते बाग-बगीचे और प्राकृतिक चरागाह इसकी गरिमा में अभिवृद्धि करते हैं। यह सैरगाह ट्रेकिंग, बर्फ पर स्केटिंग, स्कीइंग, हैंगग्लाइडिंग व पैराग्लाइडिंग जैसे रोमांचक खेलों के लिए मशहूर हैं। पहाडों पर ऊंचे-ऊंचे चीड, देवदार के पेड व जडीबूटियों की भरमार हैं।
किन्‍नौर:

किन्‍नौर का परिचय हिमाचल प्रदेश का एक जनजातीय जिला किन्नौर ६,४०७ कि.मी. में फैला एक ऐसा स्थान जहाँ का इतिहास बहुत प्राचीन हैं। यहां बहने वाली सतलज नदी के किनारे-किनारे चलकर ही किन्नौर यात्रा का आनंद लिया जा सकता हैं। यहाँ से भारत का सबसे महत्वपूर्ण वं संवेदनशील ‘हिन्दुस्तान-तिब्बत मार्ग‘ गुजरता हैं। संवेदनशील होने के कारण पर्यटकों को इस क्षेत्र में भ्रमण के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार से परिमट जारी कराना पडता हैं। शिमला से किन्नौर भ्रमण करते हुएद्व लाहुल-स्पिति से होते हुए मनाली पहुंचा जा सकता हैं।


दर्शनीय पर्यटन स्‍थल

करचम
करचम (१८९९ मी.) सतलज और बस्पा नदियों के संगम स्थल जोअरी, वांग्तु और तापरी गांवों के बाद आता हैं, जहाँ से सुन्दर बस्पा और सांगला घाटी प्रारंभ होती हैं।......
सांगला
सांगला (२,८६० मी.) किन्नौर क्षेत्र में सबसे बडा एवं दर्शनीय गांव हैं, जो करचम से १८ कि.मी. दूर हैं। यहां केसर के खेत, फलोद्यान और ऊपर जाने पर आल्पस के चरागाह हैं। किन्नौर कैलाश चोटी मन मोह लेती हैं। यहां से काली देवी का किले जैसा मंदिर ‘कमरू फोर्ट‘ भी देखा जा सकता हैं।......

ठहरने हेतुः

स्बाला गेस्ट हाउस, रेकोंग पिओ, फोन २२२८५२
होटल बंजारा, सांगला, फोन ६५१३८२८
रूपिन रीवर गेस्ट हाउस, सांगला फोन २४४२२५, २४४२०५
किन्नर कैलाश कॉटेज, कल्पा फोन २२६१५९
शिवालिका गेस्ट हाउस, कल्पा फोन २२६१५८
पी.डब्ल्यूडी रेस्ट हाउस तथा फोरेस्ट गेस्ट हॉउस उपलब्ल हैं
ट्रेवल एजेन्ट
स्नोलाईन ट्रावेल्स, छोलिंग, फोन २५३१८७
नेशनल ट्रेवलर, रेकोगं पिओ, फोन २२२२४८
नाहन

नाहन का परिचय नाहन की स्थापना सन् १६२१ में महाराजा करम प्रकाश द्वारा की गयी थी। ९३२ मीटर ऊंचाई पर स्थित नाहन सिरमौर जिले का मुख्यालय हैं। इस गौरवपूर्ण एवं नैसर्गिंक कस्बे में घुमावदार गलियॉ।, पुराने महल आदि खूबसूरती लिये हैं। यहाँ का सौ वर्ष पुराना नगर परिषद् कार्यालय भारत के सबसे पुराने कार्यालयों में से एक हैं।


नाहन में लखदाता पीर, लक्ष्मीनारायणद्व जगन्नाथ मंदिर, त्रिलोकीनाथ बाला सुन्दरी मंदिर एवं नजदीक ही छत्री, साकेती फॉसिल पार्क(जहाँ डायनासोर के अवशेष मिले हैं), सिम्बलवाडा वन्यजीव पार्क, जैतक किला(किला १० कि.मी.), लोगढ आदि दर्शनीय हैं।

दर्शनीय पर्यटन स्‍थल
रानीताल बाग
रानीताल बाग में बिखरी हरियाली, फूलों की खुशबू और पंछियों का चहकना इसके आकर्षण दुगुना कर देते हैं। बाग में एक तालाब और भव्य शिव मंदिर भी दर्शनीय हैं।......
चौगानः
चौगान सामाजिक व सांस्कृतिक हलचलों का प्रमुख ऐतिहासिक केन्द्र हैं, जहाँ सिरमौर उत्सव, राष्ट्रीय पर्वों आदि का आयोजन होता हैं।......


होटल
हिल व्यू होटल, फोनः - ०१७०२ - २२८२२
होटल हिमलोक, दादाहू
केशव गेस्ट हाऊस, फोनः- २२४५९
सिरमौर महल गेस्ट हाउस, फोन २४३७७-७८
पूछताछ एवं आरक्षण
बस स्टेण्ड फोन- ०१७०२ - २२२५१२

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हिमाचल प्रदेश:शिमला


 शिमला एक दर्शनीय स्थल  

शिमला समुद्र तल से ६८९० फीट ऊॅंचा, देश का सर्वाधिक खूबसूरत हिल स्टेशन ह, जो कि १२ किमी. लम्बाई में फैला हैं। देश की आजादी के १ वर्ष बाद तक यह ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में अपनी महत्ता सिद्ध करता रहा। न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दूनिया में अपने अनुपम सौंदर्य के कारण यह सैलानियों का प्रिय दर्शनीय स्थल है। ....
माल रोड


माल रोड एक व्यस्त सैरगाह हैं, जहां पुरानी कॉलोनियां, दुकाने और रेस्तरां हैं। मालरोड, के शिखर पर स्केण्डल प्वाईट है, जहां से शिमला का विहंगम दृश्य दर्शक को अभिभूत कर देता हैं। शिमला आने वाला प्रत्येक सैलानी शिमला के हृदयस्थल मालरोड पर अवश्य आता हैं।..



गेयटी थिएटर


गेयटी थिएटर को दुनिया के सबसे पुराने नाटकघरों में शुमार किया जाता हैं। भारतीय नाटककारों के चर्चित नाटकों का मंचन देखकर सैलानी दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं।......






वॉइसराय लॉज

वॉइसराय लॉज शिमला का सबसे सुदर ऐतिहासिक भवन हैं, जो अंग्रेजी हुकूमत की याद ताजा कर देता हैं। यहाँ ऐतिहासिक वस्तुओं का एक अनूठा संग्रहालय भी विद्यमान है।......







जाखू हिल

जाखू हिल शिमला का सर्वोच्च शिखर हैं, जहाँ पर सीधी चढाई के बाद कस्बे और आसपास के स्थानों का विहंगम दृश्य यात्रा को सार्थक कर देता हैं। इसके शिखर पर हनुमानजी का एक प्राचीन मंदिर हैं।......






नाल देहरा

नाल देहरा (२३ किमी., समुद्र तल से ३२०० मीटर ऊंचा) में ९ छिद्रों वाला गोल्फ मैदान हैं, जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य के कारण विश्वविख्यात हैं।......



कुफरी कुफरी (१६ किमी., समुद्र तल से २६२२ मीटर ऊंचा), बर्फ के खेलों, याक की सवारी तथा कस्तूरी मृग प्रजनन केन्द्र के लिए प्रसिद्ध ह। निकट ही महासू पीक से खूबसूरत घाटियों एवं पहाडों के नजारे देखते ही बनते हैं।......
अन्‍य दर्शनीय स्थल
शिमला में राजकीय संग्रहालनय एवं नजदीक ही चाडविक फाल्स (३ किमी.), समर हिल्स (५ किमी.), प्रोस्पेक्ट हिल (५ किमी.), फागू, संजोली, तारादेवी एवं संकटमोचन मंदिर (११ किमी.), तातापानी (५१ किमी., गरम पानी के झरनों हेतु प्रसिद्ध), नारकण्डा (६४ किमी. स्कीईग हेतु प्रसिद्ध), रामपुर (१४० किमी.), सराहन (१८४ किमी.भीमाकाली मंदिर समूह हेत......

चैल

शिमला से ४५ किमी. दूर चैल की स्थापना पटियाला के महाराजा भूपिन्दर सिंह ने की थी, जिन्हें अंग्रेजी कमाण्डर-इन-चीफ की पुत्री से रोमांस करने पर अमपानित कर शिमला से निकाल दिया था। तत्पश्चात् महाराजा ने अपनी अलग ग्रीष्म राजधानी चैल के रूप में बसाई।
समुद्र तल से २२५० मीटर ऊॅंचा एवं देवदार के घने जंगल से घिरा चம....

सोलन

शिमला-चण्डीगढ राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित यह पर्यटन स्थल अपने शुलिनि मेले व ठोडा नृत्य के लिए प्रसिद्ध हैं। शिमला जाते या लौटते समय यहां ठहर कर आस-पास के नजारों का आनंद लिया जा सकता है।

 मन्की पॉईंट

मन्की पॉईंट (४ किमी.), पर्यटकों की पसंदीदा जगह है जहाँ से पहाडों, घाटियों एवं सतलज नदी के दृश्य अत्यन्त खूबसूरत लगते हैं।

यहाँ माल रोड, बाबा बालकनाथ मन्दिर (३ किमी.),, साई बाबा मंदिर, सेण्ट्रल रिसर्च इन्स्टीट्यूट दर्शनीय हैं।

निकट ही सनावर (५ किमी.), स्थित १५० वर्ष पराना लॉरेंस पब्लिक स्कूल, चर्च मशहूर सौर ऊर